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गाथा ११४]
एत्थतणपदविसेसप्पाबहुअपरूवणा * असंखेजगुणहाणिढिदिखंडयाणं पढमहिदिखंडयं मिच्छत्तसम्मत्तसम्मामिच्छत्ताणमसंखोजगुणं ।
६ १४०. किं कारणं ? पुम्विन्लादो संखेजसहस्समेत्ताणि ठिदिखंडयाणि असंखेज्जगुणकमेण हेट्ठा ओसरियूण दूरावकिट्टिसण्णि इद्विदीए असंखेजे भागे घेत्तूणेदस्स द्विदिखंडयस्स पवुत्तिदंसणादो २१ ।
* संखेजगुणहाणिढिदिखंडयाणं चरिमहिदिखंडयं जं तं संखेजगुणं ।
5 १४१. किं कारणं ? दूरावकिट्टिमेत्तढिदिसंतकम्मं मोत्तूण पुणो उवरिमसंखेज्जे भागे घेत्तूणेदस्स द्विदिखंडयस्स पवुत्तिदंसणादो २२।।
* पलिदोवमद्विदिसंतकम्मादो विदियं ठिदिखंडयं संखेजगुणं ।
१४२ कुदो ? पुव्विल्लट्ठिदिखंडयादो संखेजसहस्साणि ठिदिखंडयाणि पच्छाणुपुव्वीए संखेज्जगुणवड्डिदाणि हेट्ठा ओसरियणेदस्स द्विदिखंडयस्स लद्धसरूवत्तादो २३ ।
* जम्हि ट्ठिदिखंडए अवगदे दंसणमोहणीयस्स पलिदोवममेत्तं द्विदिसंतकम्मं होइ तं द्विदिखंडयं संखेजगुणं ।
* उससे मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके असंख्यात गुणहानिवाले स्थितिकाण्डकोंमेंसे प्रथम स्थितिकाण्डक असंख्यातगुणा है।
६१४०. क्योंकि पूर्वके स्थितिकाण्डकसे संख्यात हजार स्थितिकाण्डक असंख्यात गुणितक्रमसे नीचे सरककर दूरापवृष्टिसंज्ञक स्थितिके असंख्यात बहुभागको ग्रहणकर इस स्थितिकाण्डककी प्रवृत्ति देखी जाती है २१ ।
* उससे संख्यात गुणहानिवाले स्थितिकाण्डकोंमेंसे जो अन्तिम स्थितिकाण्डक है वह संख्यातगुणा है ।
$ १४१. क्योंकि दूरापकृष्टिप्रमाण स्थितिसत्कर्मको छोड़कर पुनः उपरिम संख्यात बहुभागको ग्रहण कर इस स्थितिकाण्डककी प्रवृत्ति देखी जाती है २२ ।
* उससे पन्योपमप्रमाण स्थितिसत्कर्मके रहते हुए दूसरा स्थितिकाण्डक संख्यातगुणा है।
६ १४२. क्योंकि पूर्वके स्थितिकाण्डकसे पश्चादानुपूर्वीके अनुसार संख्यातगुणवृद्धिरूप संख्यात हजार स्थितिकाण्डक पीछे सरककर इस स्थितिकाण्डकका स्वरूप उपलब्ध होता है २३ ।
* उससे जिस स्थितिकाण्डकके नष्ट होनेपर दर्शनमोहनीयका पन्योपमप्रमाण १. ता०प्रतौ संखेज्जगुणसहस्समेत्ताणि इति पाठः। २. ता प्रतो हेट्टदो इति पाठः ।