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पढमगाहासुत्तस्स अत्थपरूवणा
गाथा ६३ ]
३९ होइ । णिरयगदीए ताव पयदपरूवणं कस्सामो, पच्छा सेसगदीणमिदि जाणावणद्वं 'णिरयदीए' त्ति वुत्तं । तत्थ वि संखेजवस्सिगे असंखेजवस्सिगे वा भवग्गहणे सरिसी एसा परूवणा त्ति पदुप्पायणटुं 'संखेजवस्सिगे वा असंखेज्जवस्सिगे वा' त्ति णिदेसो कओ। 'लोभागरिसा थोवा' लोभपरिवत्तणवारा सव्वत्थोवा त्ति भणिदं होदि । कुदो एदेसिं थोवत्तमिदि चे ? णिरयगदीए लोभपरियट्टणवाराणं सुद्दु विरलाणमुवलंभादो ।
* मायागरिसा संखेजगुणा ।
७१. कुदो ? एक्के कम्मि लोभपरिवत्ते संखेजसहस्साणं मायापरिवत्तणवाराणमुवलंभादो । को गुणगारो ? तप्पाओग्गसंखेजसहस्सरूवाणि ।
* माणागरिसा संखेजगुणा ।
७२. एत्थ वि कारणमणंतरपरूविदत्तादो सुगमं । गुणगारो च तप्पाओग्गसंखेजरूवमेत्तो।
* कोहागरिसा विसेसाहिया ।
६ ७३. केत्तियमेत्तो विसेसो ? सगसंखेजदिभागमेत्तो । लोभ-मायागरिसमेत्तेण को आधार बनाकर यह उक्त कथनका तात्पर्य है । सर्व प्रथम नरकगतिमें प्रकृत प्ररूपणा करेंगे, तदनन्तर शेष गतियोंकी अपेक्षा वह प्ररूपणा करेंगे इस बातका ज्ञान करानेके लिए सूत्रमें 'णिरयगदीए' यह वचन कहा है। उसमें भी संख्यात वर्षको आयुवाले और असंख्यात वर्षकी आयुवाले भवमें यह प्ररूपणा समान है इस बातका कथन करने के लिए सूत्रमें 'संखेज्जवस्सिगे वा असंखेज्जवस्सिगे वा' यह निर्देश किया है । 'लोभागरिसा थोवा' लोभके परिवर्तनवार सबसे स्तोक हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
शंका-इनका स्तोकपना किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान—क्योंकि नरकगतिमें लोभके परिवर्तनवार अत्यन्त विरल पाये जाते हैं, इससे जानते हैं कि वहाँ लोभके परिवर्तनवार सबसे स्तोक हैं।
* उनसे मायाकषायके परिवर्तनवार संख्यातगुणे हैं।
$ ७१. क्योंकि लोभके एक-एक परिवर्तनवारमें मायाके परिवर्तनवार संख्यात हजार पाये जाते हैं।
शंका-गुणकार क्या है ? समाधान-तत्प्रायोग्य संख्यात हजार अंक गुणकार है। * उनसे मानकषायके पविर्तनवार संख्यातगुणे हैं ।
$ ७२. यहाँ पर भी कारणका कथन सुगम है, क्योंकि उसका अनन्तर पूर्व कथन कर आये हैं । और गुणकार तत्प्रायोग्य संख्यात हजार अंकप्रमाण है।
* उनसे क्रोधकषायके परिवर्तनवार विशेष अधिक हैं । ६.७३. शंका-विशेषका प्रमाण कितना है ? समाधान-अपना संख्यातवाँ भागप्रमाण है। मानके परिवर्तनवारोंसे लोभ और