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गाथा ९४ ]
दंसणमोहोवसामणा
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$ १५४. सेसाणं पुण कम्माणमाउगवजाणं सा चेव पोराणिया गुणसेढी गलिदसेसा तथा चैव हवइ, ण तत्थ पडिसेहो अस्थि त्ति जाणावणफलमुत्तरमुत्तं -
* सेसाणं कम्माणं गुणसेढी अत्थि ।
$ १५५. यत्थमेदं सुत्तं । एवमेदम्मि अवस्थाविसेसे मिच्छत्तस्स गुणसेढिणिक्खेवासंभवं सेसकम्माणं च गुणसेढिणिक्खेवसंभवं पदुप्पाइय संपहि आवलिय-पांडआवलियमेसेसपादिस्स मिच्छत्तस्स तम्मि अवस्थाविसेसे पडिआवलियादो उदीरणासंभवपदुष्पायणट्ठमिदमाह -
* पडिआवलियादो चेव उदीरणा ।
$ १५६. तदवत्थस्स मिच्छत्तस्स पडिआवलियादो चेव पदेसग्गमसंखे जलोगपडिभागेणोकड्डिय उदयावलियन्तरे सययाविरोहेण णिक्खिवदित्ति वृत्तं होइ । एत्तो समयाहियावलियमेत्तसेसाए पढमट्ठिदीए मिच्छत्तस्स जहण्णिया ठिदिउदीरणा होदि, उदयावलियबाहिरेयट्ठिदिमोकड्डिय असंखेज लोग पडिभागेण आवलिय-वे-तिभागे अइच्छाविय तत्तिभागे उदय पहुडि समयाविरोहेण णिक्खेवदंसणादो |
* आवलियाए सेसाए मिच्छुत्तस्स घादो णत्थि ।
$ १५४. परन्तु आयुकर्मके अतिरिक्त शेष कर्मोंकी वही पुरानी गलितावशेष गुणश्रेणि उसी प्रकार होती है, उसके होनेमें प्रतिषेध नहीं है इस बातका ज्ञान करानेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं
* शेष कर्मोंकी गुणश्रेणि होती है ।
$ १५५ यह सूत्र गतार्थ है । इस प्रकार इस अवस्थाविशेष में मिध्यात्वप्रकृतिका गुणश्रेणिनिक्षेप असम्भव है और शेष कर्मोंका गुणश्रेणिनिक्षेप सम्भव है इसका कथन करके अब जिसकी आवलि और प्रत्यावलिप्रमाण प्रथम स्थिति शेष है ऐसे मिथ्यात्वकर्मकी उस अवस्थाविशेष में प्रत्यावलिमेंसे उदीरणा होना सम्भव है इसका कथन करनेके लिये इस सूत्रको कहते हैं—
* प्रत्यावलिमेंसे ही उदीरणा होती है ।
$ १५६. तदवस्थ मिध्यात्वकर्मकी जो प्रत्यावलि है उसके द्रव्यमें असंख्यात लोकका भाग देनेपर जो एक भागप्रमाण कर्मपुञ्ज लब्ध आवे उसका अपकर्षणकर उसे आगम में बतलाई गई विधि अनुसार उदयावलिमें निक्षिप्त करता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । इस प्रत्यावलिमेंसे एक समय अधिक एक आवलिप्रमाण प्रथम स्थितिकी जघन्य स्थिति उदोरणा होती है, क्योंकि उदद्यावलिके बाहर एक स्थितिके द्रव्य में असंख्यात लोकका भाग देनेपर जो एक भाग लब्ध आवे उसका अपकर्षणकर एक समय कम आवलिके दो त्रिभागको अतिस्थापितकर एक समय अधिक उसके त्रिभागमें उदय समय से लेकर आगमविधिसे निक्षेप देखा जाता है ।
* आवलिप्रमाण प्रथम स्थितिके शेष रहनेपर मिथ्यात्व कर्मका घात नहीं होता ।