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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [सम्मत्ताणियोगहारं १० सहस्सरूयमेत्ताणुभागखंडएसु घादिदेसु तदो अपुव्वकरणपढमट्टिदिबंधो पढमट्ठिदिखडयं संखेजसहस्समेत्ताणमेस्थतणाणुभागखंडयाणं परिमाणखंडयं च एदाणि तिण्णि वि जुगवं परिसमप्पंति । एवं होदि त्ति कट्ट एक्कम्हि द्विदिखंडए अणुभागसहस्साणि घादेदि त्ति सिद्ध। संपहि एदस्सेवत्थस्स उवसंहारमुहेण परिप्फुडीकरणट्ठमुत्तरसुत्तमोइण्णं--
* ठिदिखंडगे समत्त अणुभागखंडयं च द्विदिबंधगद्धा च समत्ताणि भवंति।
5 १४०. सुगमं चेदं, अणंतरादीदपबंधेणेव गयत्थत्तादो । संपहि एवंविहेसु द्विदिखंडयसहस्सेसु पादेक्कमणुभागखंडयसहस्साविणाभावीसु गदेसु तदो अपुव्वकरणद्धा समप्पदि त्ति पदुप्पायणमुत्तरसुत्तं भणइ
* एवं ठिदिखंडयसहस्सेहिं बहुएहिं गदेहिं अपुव्वकरणद्धा समत्ता भवदि।
$ १४१. गयत्थमिदं सुत्तं । णवरि पढमट्ठिदिखंडयादो विदियट्ठिदिखंडयं विसेसहीणं संखेजदिभागेण । एवमणंतराणंतरादो विसेसहीणं णेदव्वं जाव चरिमद्विदिखंडये त्ति । संख्यातवाँ भाग ही व्यतीत हुआ है। पुनः इसी विधिसे शेष विरलनोंके प्रति प्राप्त संख्यात हजार संख्याप्रमाण अनुभागकाण्डकोंका घात करनेपर उस समय अपूर्वकरणसम्बन्धी प्रथम स्थितिबन्ध, प्रथम स्थितिकाण्डक और यहाँ सम्बन्धी संख्यात हजार अनुभागकाण्डकोंके परिमाणसे युक्त अनुभागकाण्डक ये तीनों ही एकसाथ समाप्त होते हैं। इसप्रकार होता है ऐसा करके एक स्थितिकाण्डकके भीतर हजारों अनुभागकाण्डकोंका घात करता है यह सिद्ध हुआ। अब इसी उपसंहारद्वारा अर्थको सुस्पष्ट करनेके लिये आगेका सूत्र आया है
* स्थितिकाण्डकके समाप्त होनेपर अनुभागकाण्डक और स्थितिबन्धकाल समाप्त होते हैं।
$ १४०. यह सूत्र सुगम है, क्योंकि अनन्तर पूर्व कहे गये प्रबन्धसे ही इसका ज्ञान हो जाता है। अब इस प्रकार जो प्रत्येक स्थितिकाण्डक हजारों अनुभागकाण्डकोंका अविनाभावी है ऐसे हजारों स्थितिकाण्डकोंके व्यतीत होनेपर तब अपूर्वकरणका काल समाप्त होता है इस बातका कथन करनेकेलिये आगेके सूत्रको कहते कहते हैं___* इस प्रकार बहुत हजार स्थितिकाण्डकोंके व्यतीत होनेपर अपूर्वकरणका काल समाप्त होता है।
१४१. यह सूत्र गतार्थ है । इतनी विशेषता है कि प्रथम स्थितिकाण्डकसे दूसरा स्थितिकाण्डक संख्यातवां भाग हीन है। इसप्रकार अन्तिम स्थितिकाण्डकके प्राप्त होने तक पूर्व-पूर्वके स्थितिकाण्डकसे आगे-आगेका स्थितिकाण्डक विशेष हीन जानना चाहिए।
विशेषार्थ-यहाँ अपूर्वकरणके प्रथम समयसे लेकर अन्तिम समय तक आयुकर्मके १. ताप्रती परिमाणाणुखंडय इति पाठः :