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गाथा ९४ ।
दंसणमोहोवसामणा
उक्कीरणद्धा होदि त्ति जाणावणमुत्तरमुत्तावयारो
* एक्कम्हि ट्ठिदिखंडए अणुभागखंडयसहस्साणि धादेदि ।
$ १३९. किं कारणं १ ट्ठिदिखंडयउक्कीरणद्धादो अणुभागखंडयउक्कीरणद्धाए संखेजगुणहीणत्तादो । संपहि एदस्सेवत्थस्स परिष्फुडीकरणट्ठमिमं परूवणं वत्तइस्सामो । तं जहा - एगाणुभागकंडयउक्कीरणकालेण एगट्ठिदिखंडयउक्कीरणकालम्मि भागे हिदे संखेज्ज सहरसमेत्ताणि रूवाणि आगच्छंति । पुणो एदाणि विरलिय पढमट्ठिदिखंडयउक्कीरणद्धं समखंड काढूण दिण्णे तत्थ एक्केक्स्स रूवस्स अणुभागखंडयउक्कीरणकालपमाणं पावे । पुणो एत्थ एगरूवधरिदं विरलिय पुध दुवेयव्वं । संपहि एवंविहपुधविरलणाए पढमसमयम्मि पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागायामपढमट्ठिदिखंडयस्स पढमफालिमा गाएदूण णासे । अणुभागखंडयस्स वि जहण्णफद्दय पहुडि जाचुक्कस्सफद्दये त्ति ताव विरचिदफद्दयाणमणंताभागमेत्तपढमफालिं घेत्तूण तत्थेव णासेइ । तिस्से चैव पुधट्ठ विदविरलगाए विदियसमयम्मि तेणेव विधिणा ठिदिखंडयविदियफालिमणुभागखंडयविदियफालिं च समयं घेत्तूण घादेदि । एवं पुणो पुणो गेण्हमाणेण पुव्वुत्तेगरूवधरिदसमयमेत्तफालीसु घादिदासु पढमाणुभागखंडयं समप्पइ । णवरि पढमट्ठिदिखंडयमज विण समप्पइ, तदुक्कीरणद्धाए संखेज दिभागस्सेव गयत्तादो । पुणो एदेणेव विधिणा सेसविरलिदसंखेजभागकाण्डकका उत्कीरणकाल होता है इस बातका ज्ञान करानेके लिये आगेके सूत्रका अवतार हुआ है
* एक स्थितिकाण्डकमें हजारों अनुभागकाण्डकोंका घात करता है ।
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$ १३९. क्योंकि स्थितिकाण्डकके उत्कीरणकालसे अनुभागकाण्डकका उत्कीरणकाल संख्यातगुणा हीन होता है । अब इसी अर्थको सुस्पष्ट करनेके लिये इस प्ररूपणाको बतलाते हैं। यथा— एक अनुभागकाण्डककालके उत्कीरणकालका एक स्थितिकाण्डकके उत्कीरणकालमें भाग देनेपर संख्यात हजारप्रमाण संख्या प्राप्त होती है । पुनः इनका विरलनकर प्रथम स्थितिकाण्डकके उत्कीरणकालके समान खंड करके प्रत्येक विरलन अंकके प्रति देयरूप से देनेपर वहाँ एक-एक अंकके प्रति अनुभागकाण्डकके उत्कीरणकालका प्रमाण प्राप्त होता है । पुनः यहाँपर एक अंक के प्रति जो प्राप्त हुआ उसका विरलनकर पृथक् स्थापित करना चाहिए। अब इस प्रकारका जो पृथक् विरलन स्थापित किया उसके प्रथम समय में पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण यामवाले प्रथम स्थितिकाण्डककी प्रथम फालिको ग्रहणकर उसका नाश करता है । अनुभागकाण्डककी भी जघन्य स्पर्धकसे लेकर उत्कृष्ट स्पर्धकतक विरचित स्पर्धकोंकी अनन्त बहुभागप्रमाण प्रथम फालिको ग्रहणकर उसका वहींपर नाश करता है । पृथ स्थापित हुए उसी विरलनके दूसरे समयमें उसी विधिसे स्थितिकाण्डककी दूसरी फालिको तथा अनुभागकाण्डकी दूसरी फालिको उसी समय ग्रहणकर उनका घात करता है। इसप्रकार पुनः पुनः उन दोनोंको प्रहण करनेसे पूर्वोक्त विरलनके एक अंकके प्रति समयका जितना प्रमाण प्राप्त हुआ था तत्प्रमाण फालियोंका घात करनेपर प्रथम अनुभागकाण्डक समाप्त होता है। इतनी विशेषता है कि प्रथम स्थितिकाण्डक अभी भी समाप्त नहीं हुआ है, क्योंकि उसके उत्कीरणका