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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [सम्मत्ताणियोगद्दारं १० १२१. सुगम ।। ___* अधापवत्तकरणे हिदिखंडयं वा अणुभागखंडयं वा गुणसेढी वा गुणसंकमो बा णत्थि, केवलमणंतगुणाए विसोहीए विसुज्झदि ।।
$ १२२. किं कारणमेत्थ द्विदिखंडयघादादीणमभावो चे? ण, अधापवत्तविसोहीणं तहाविहसत्तीए असंभवादो। तम्हा केवलमेसो पडिसमयमणंतगुणाए विसोहीए विसुज्झदि, ण पुण डिदिखंडयादिकज्जकरणक्खमो त्ति सिद्धं ।
* अप्पसत्थकम्मंसे जे बंधइ ते दुह्राणिये अणंतगुणहीणे च, पसत्थकम्मंसे जे बंधइ ते च चउट्ठाणिए अणंतगुणे च समये समये।
६१२३. जइ वि ऐसो द्विदिखंडयघादादिकज्जविसेसं ण कुणइ तो वि ण एदस्स पडिसमयमणंतगुणविसोहिपरिणामो णिप्फलो, समयं पडि अप्पसत्थ-पसत्थपयडीण
६१२१. यह सूत्र सुगम है।
* अधःप्रवृत्तकरणमें स्थितिकाण्डकघात, अनुभागकाण्डकघात, गुणश्रेणि और गुणसंक्रम नहीं होता। केवल वह प्रति समय अनन्तगुणी विशुद्धिसे विशुद्ध होता जाता है।
१ १२२. शंका-इस. करणमें स्थितिकाण्डकघात आदिका अभाव होनेका क्या कारण है ?
समाधान--नहीं, क्योंकि अधःप्रवत्तकरणमें प्राप्त होनेवाली विशुद्धियोंमें उसप्रकारको शक्तिका अभाव है, इसलिये बह केवल प्रति समय अनन्तगुणी विशुद्धिसे विशुद्ध होता जाता है । परन्तु वह काण्डकघात आदि कार्य करनेमें समर्थ नहीं होता यह सिद्ध हुआ।
विशेषार्थ—अधःप्रवृत्तकरणके प्रत्येक समयके परिणामोंमें नाना जीवोंकी अपेक्षा तो यथासम्भव षट्स्थान पतित वृद्धिस्वरूप विशुद्धि बन जाती है, परन्तु प्रथम समयके विवक्षित परिणामसे दूसरे समयका विवक्षित परिणाम नियमसे अनन्तगुणी विशुद्धिसे युक्त होता है यह सब पहले प्रथमादि समयोंमें प्राप्त होनेवाली विशुद्धियोंके अल्पबहुत्वके कथनके प्रसंगसे वतला ही आये हैं। फिर भी इन परिणामोंमें स्थितिकाण्डकघात आदिरूप कार्य करनेकी सामर्थ्य नहीं पाई जाती यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
* यह जीव जिन अप्रशस्त कर्मांशोंको बाँधता है उन्हें समय समयमें द्विस्थानीय अनन्तगुणी हीन अनुभाग शक्तिसे युक्त बाँधता है। तथा जिन प्रशस्त कर्माशोंको बाँधता है उन्हें समय समयमें चतु:स्थानीय अनन्तगुणी अनुभागशक्तिसे युक्त बाँधता है।
१२३. यद्यपि यह जीव स्थितिकाण्डकघात आदि कार्यविशेषको नहीं करता है तो भी इसका प्रति समय अनन्तगुणी विशुद्धिस्वरूप होनेवाला परिणाम निष्फल नहीं है, क्योंकि