________________
गाथा ९४ ]
दंसणमोहोवसामणा
२५३
दीहत्तप्पा बहुअं चेदि । तत्थ ताव पढमसमयप्पहुडि परिणामपंतीण मायामस्स थोवबहुत्तविधिं वत्तइस्सामो । तं जहा - अपुव्वकरणपढमसमए परिणामपंतिआयोमो थोवो । विदियसमए विसेसाहिओ । केत्तियमेत्तो विसेसो ? असंखेज्जलोगपरिणामट्ठाणमेत्तो । होतो वि पढमसमयपरिणामपंतिमंतो मुहुत्तमेत्तखंडाणि काढूण तत्थ एयखंडमेत्तो । एवमणंतरावणिधाए विसेसाहियकमेण णेदव्वं जाव चरिमसमयपरिणामपंतिआयामो त्ति । णवरि समए समए अपुव्वाणि चैव परिणामट्ठाणाणि । संपहि विसोहीणं तिव्वमंददाये अप्पा बहुअं सुत्ताणुसारेण कस्सामो । तं जहा - - 'अपुव्वकरणपढमसमए जहण्णविसोही थोवा' एवं भणिदे अपुव्वकरणपढमसमए असंखेज्जलोगमेत्तविसोहिट्ठा णाणं मझे जा जहणिया विसोही सा सव्वमंदाणुभागा ति वृत्तं होइ ।
* तत्थेव उक्कस्सिया विसोही अनंतगुणा ।
$ ११०. तत्थेवापुव्वकरणपढमसमए जा उक्कस्सिया विसोही असंखेज्जलोगमेत्तछट्टाणाणि समुन्लंघियूणावट्ठिदा सा पुव्विल्लजहण्णविसोहीदो अनंतगुणा त्ति वृत्तं होइ । * विदियसमए जहण्णिया विसोही अनंतगुणा ।
और परिणामसम्बन्धी पंक्तियोंकी दीर्घतासम्बन्धी अल्पबहुत्व | उनमें से सर्वप्रथम प्रथम समयसे लेकर परिणामोंकी पंक्तियोंके आयामकी अल्पबहुत्वविधिको बतलावेंगे | यथा— अपूर्वकरणके प्रथम समयमें परिणामोंकी पंक्तिका आयाम सबसे स्तोक है। उससे दूसरे समयमें विशेष अधिक है ।
शंका- विशेषका प्रमाण कितना है ?
समाधान—असंख्यात लोकप्रमाण जो परिणामस्थान हैं तत्प्रमाण है । इतना होता हुआ भी प्रथम समयकी परिणामों की पंक्तिके, अन्तर्मुहूर्तके जितने समय हों उतने खण्ड करने पर उनमें एक खण्डप्रमाण है ।
इस प्रकार अनन्तरोपनिधाका आश्रयकर विशेषाधिक क्रमसे अन्तिम समयके परिणामोंकी पंक्तिके आयामके प्राप्त होनेतक कथन करते हुए ले जाना चाहिए। इतनी विशेषता है कि प्रत्येक समय में अपूर्व ही परिणामस्थान प्राप्त होते हैं। अब विशुद्धियों की तीव्रतामन्दताके अल्पबहुत्वको सूत्रके अनुसार करेंगे । यथा - 'अपूर्वकरणके प्रथम समयमें जघन्य विशुद्धि सबसे स्तोक है' ऐसा कहने पर अपूर्वकरणके प्रथम समयमें असंख्यात लोकप्रमाण विशुद्धिस्थानोंके मध्य जो जघन्य विशुद्धि है वह सबसे मन्द अनुभागवाली है यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
2
* वहीं पर उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्तगुणी है ।
$ ११०. वहीं पर अर्थात् अपूर्वकरणके प्रथम समयमें जो उत्कृष्ट विशुद्धि है वह असंख्यात लोकप्रमाण षट्स्थानोंको उल्लंघन कर अवस्थित है । वह पूर्वकी जघन्य विशुद्धिसे अनन्तगुणी है यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
* उससे दूसरे समय में जघन्य विशुद्धि अनन्तगुणी है ।