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गाथा ९४ |
दंसणमोहोवसामणा
* अधापवत्तकरणपढमसयए जहण्णिया विसोही थोवा । $ ९४. किं कारणं ? एत्तो अण्णस्स जहण्णवि सोहिद्वाणस्स अधापवत्तकरणविस अणुवलंभादो ।
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* विदियसमए जहण्णिया विसोही अनंतगुणा ।
९५. कुदो ? पढमसमयजहण्णविसोहिडाणादो छडाणकमेणासंखेज्जलोगमेत्तविसोहिडांणाणि समुल्लंघियूण डिदविदियखंडजहण्ण विसोहिट्ठाणस्स विदियसमए जहणभावदंसणादो ।
* एवमंतोमुहुत्तं ।
$ ९६. एवमेदेण कमेण जहण्णविसोहीओ चेव पडिसमयमणंतगुणकमेण णेदव्वाओ जाव अंतोमुहुत्तमुवरिं चडिदूण द्विदपढमणिव्वग्गणकंडय चरिमसमओ भणिदं होदि ।
हुआ । अब परस्थान अल्पबहुत्वका कथन करनेके लिये आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं* अधःप्रवृत्तकरणके प्रथम समय में जघन्य विशुद्धि सबसे स्तोक है ।
$ ९४. क्योंकि इससे कम अन्य जघन्य विशुद्धिस्थान अधःप्रवृत्तकरणमें नहीं
पाया जाता ।
* उससे दूसरे समयमें जघन्य विशुद्धि अनन्तगुणी है ।
$ ९५. क्योंकि प्रथम समयके जघन्य विशुद्धिस्थान से षट्स्थानक्रमसे असंख्यात लोकमात्र विशुद्धिस्थानोंको उल्लंघन कर स्थित हुए दूसरे खण्डके जघन्य विशुद्धिस्थानका दूसरे समय में जघन्यपना देखा जाता है ।
विशेषार्थ — अधःप्रवृत्तकरणके प्रथम समयका जो दूसरा खण्ड है तत्सदृश ही दूसरे समयका प्रथम खण्ड है । जैसा कि पूर्वोक्त अंक संदृष्टिसे स्पष्ट ज्ञात होता है । इन दोनों स्थानोंकी जघन्य विशुद्धि समान होकर भी यह प्रथम समय के प्रथम खण्डकी जघन्य विशुद्धिसे षट्स्थान पतितक्रमसे अनन्तगुणी है यह उक्त सूत्रका तात्पर्य है । जीवकाण्ड ज्ञानमार्गणाके अन्तर्गत श्रुतज्ञान प्ररूपणा के समय पर्यायज्ञानके ऊपर पर्यायसमास ज्ञानके वृद्धि क्रमको बतलानेके लिये जो षट्स्थानपतित वृद्धिका निर्देश किया है उसी प्रकार यहाँ भी घटित कर लेना चाहिए ।
* इस प्रकार अन्तर्मुहूर्त तक जानना चाहिए ।
$ ९६. इस प्रकार अन्तर्मुहूर्त ऊपर जाकर स्थित हुए प्रथम निर्वर्गणाकाण्डकके अन्तिम समयके प्राप्त होने तक इस क्रमसे जघन्य विशुद्धिका ही प्रति समय अनन्तगुणितक्रमसे कथन करना चाहिए यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
विशेषार्थ — अधःप्रवृत्तकरण में प्रत्येक निर्वर्गणाकाण्डकका प्रमाण अन्तर्मुहूर्त है जो अधःप्रवृत्तकरणके कालके संख्यातवें भागप्रमाण है । अधःप्रवृत्तकरणके प्रथम समय से लेकर प्रथम निर्वर्गणाकाण्डकके अन्तिम समय तक प्रथम समयकी जघन्य विशुद्धिसे दूसरे समय