________________
गाथा ९४] दसणमोहोवसामणा
२३५ असंखेअलोगमेत्ताणि परिणामट्ठाणाणि छवड्डिकमेणावद्विदाणि द्विदिबंधोसरणादीणं कारणभूदाणि अस्थि । तेसिं परिवाडीए विरचिदाणं पुणरुत्तापुणरुत्तभावगवेसणा अणुकट्टी णाम । अनुकर्षणमनुकृष्टिरन्योन्येन समानत्वानुचिंतनमित्यनान्तरम् । सा वुण संसारपाओग्गेसु हिदिबंधज्झवसाणट्ठाणादिपरिणामेसु पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेत्तद्धाणमुवरि गंतूण वोच्छिादि, जहण्णढिदिबंधपाओग्गपरिणामाणमुवरि पलिदोवमासंखेजदिभागमेत्तहिदिविसेसेसु अणुवुत्तोए तत्थ दसणादो। इह वुण तहा ण होइ, किंतु अंतोमुहुत्तमेत्तमवट्ठिदमद्धाणं सगद्धाए संखेजदिमागं गंतूणाणुकट्टिवोच्छेदो होदि । तत्कथमिति चेत् ? उच्यते-अधापवत्तकरणपढमसमए असंखेचलोगमेत्ताणि परिणामहाणाणि होति । पुणो विदियसमए ताणि चेव परिणामट्ठाणाणि अण्णेहिं अपुव्वेहिं परिणामट्ठाणेहिं विसेसाहियाणि । केत्तियमेत्तो विसेसो १ असंखेज्जलोगपरिणामट्ठाणमेत्तो पढमसमयपरिणामट्ठाणाणमंतोमुहुत्तपडिभागिओ। एवमेदेण पडिभागेणे समयं पडि विसेसाहियाणि कादूण णेदव्वं जाव अधापवत्तकरणचरिमसमयो त्ति । पृथक् एक-एक समयमें छह वृद्धियोंके क्रमसे अवस्थित और स्थितिबन्धापसरणादिकके कारणभूत असंख्यात लोकप्रमाण परिणामस्थान होते हैं । परिपाटीक्रमसे विरचित इन परिणामोंके पुनरुक्त और अपुनरुक्त भावका अनुसन्धान करना अनुकृष्टि है । 'अनुकर्षणमनुकृष्टिः' अर्थात् उन परिणामोंकी परस्पर समानताका विचार करना यह अनुकृष्टिका एकार्थ है। परन्तु वह संसारके योग्य स्थितिबन्धाध्यवसानस्थानादिरूप परिणामोंके रहते हए पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण काल ऊपर जाकर व्युच्छिन्न होती है, क्योंकि जघन्य स्थितिबन्धके योग्य परिणामों के सद्भावमें पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थितिविशेषोंकी अनुवृत्ति वहाँ देखी जाती है। परन्तु यहाँ पर वैसा नहीं होता, किन्तु अन्तर्मुहूर्तप्रमाण अवस्थित कालके, जो कि अपने अर्थात् अधःप्रवृत्तकरणके कालके संख्यातवें भागप्रमाण है, व्यतीत होनेपर अनुकृष्टिका विच्छेद होता है।
शंका-वह कैसे ?
समाधान—कहते हैं-अधःप्रवृत्तकरणके प्रथम समयमें असंख्यात लोकप्रमाण परिणामस्थान होते हैं । पुनः दूसरे समयमें वे ही परिणामस्थान अन्य अपूर्व परिणामस्थानोंके साथ विशेष अधिक होते हैं।
शंका-विशेषका प्रमाण कितना है ?
समाधान-प्रथम समयके परिणामस्थानोंमें अन्तर्मुहूर्तका भाग देने पर जो एक भागप्रमाण असंख्यात लोकप्रमाण परिणाम प्राप्त होते हैं उतना है।
इस प्रकार इस प्रतिभागके अनुसार प्रत्येक समयमें विशेष अधिक परिणामस्थान करके अधःप्रवृत्तकरणके अन्तिम समय तक ऐसा ही जानना चाहिए।
विशेषार्थ--जिसमें आगेके समयोंमें होनेवाले परिणामोंकी पिछले समयके परिणामों के साथ समानता दिखलाई जाती है उसका नाम अनुकृष्टि है। यह अनुकृष्टि संसार अवस्थाके
१. ता०प्रती-मेदेण परिणामेण पडिभागेण इति पाठः।