________________
२३१
गाथा ९४ ]
दंसणमोहोवसामणा
* किं ठिदियाणि कम्माणि अणुभागेसु केसु वा । ओवद्देयूण साणि कं ठाणं पडिवज्जदि ति विहासा ।
$ ७९. एदिस्से चउत्थगाहाए जहावसरपत्तमत्थविहासणमिदाणि कस्सामोति gists |
* द्विदिघादो संखेज्जा' भागे घादेदूण संखेज्जदिभागं पडिवज्जइ । § ८०, अधापवत्तकरणचरिमसमयविसयादो ठिदिसंतकम्मादो अंतोकोडा कोडिसागरोवमपमाणादो अपुव्वाणियद्विकरणपरिणामेहिं संखेज्जे भागे जहाकमं संखेजस हस्से हिं ठिदिखंडयघादेहिं घादिदूण तदो पुव्वणिरुद्धठिदीए संखेज्जदिभागमेसो पडिवज्जदित्ति भणिदं होइ ।
* अणुभागघादो अणते भागे घादिदूण अनंतभागं पडिवज्जइ ।
$ ८१. अप्पसत्थाणं कम्माणं अणुभागस्साणंते भागे अपुव्वाणियट्टिकरणपरिणामेहिं घादिय तदणंतिमभागमेसो पडिवञ्जदि त्ति वृत्तं होइ । संपहि दे दो वि घादा अधापवत्तकरणं वोलिय अपुव्वकरणपढमसमय पहुडि पयट्टंति त्ति जाणावणट्ठसुतरसुत्तमाह
* 'उक्त जीव किस स्थितिवाले कर्मोंका और किन अनुभागों में स्थित कर्मोंका अपवर्तन करके किस स्थानको प्राप्त करता है' इसकी विभाषा ।
§ ७९. यथा अवसर प्राप्त इस चौथी गाथाके अर्थका इस समय विशेष व्याख्यान करेंगे यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
* स्थितिघात – संख्यात बहुभागप्रमाण स्थितियोंका घातकर संख्यातवें भागको प्राप्त होता है ।
§ ८०. अधःप्रवृत्तकरणके अन्तिम समयमें जो स्थितिसत्कर्म अन्तःकोड़ाकोड़ी सागरोपमप्रमाण है उसमेंसे अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरणरूप परिणामोंके बलसे यथाक्रम संख्यात हजार स्थिति काण्डकघातोंके द्वारा संख्यात बहुभागप्रमाण स्थितिका घातकर पहलेकी विवक्षित स्थिति संख्यातवें भागप्रमाण स्थितिको यह प्राप्त होता है यह उक्त कथनका पर्य है ।
* अनुभागघात – अनन्त बहुभागप्रमाण अनुभागका घातकर अनन्तवें भागप्रमाण अनुभागको प्राप्त होता है ।
$ ८१. अप्रशस्त कर्मोंके अनुभागके अनन्त बहुभागका अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरणरूप परिणामोंके बलसे घातकर उसके अनन्तवें भागप्रमाण अनुभागको यह प्राप्त होता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । अब ये दोनों ही घात अधःप्रवृत्तकरणको उल्लंघन कर • अपूर्वकरणके प्रथम समयसे प्रवृत्त होते हैं इस बातका ज्ञान करानेके लिये आगेके सूत्रको कहते हैं
१. ताप्रतो ट्ठिदिया दो संखेज्जे इति पाठोः ।