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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
$ ७५. संपहि तप्पच्छद्धस्स अत्थविहासणट्ठमिदमाह -
* 'अंतरं वा कहिं किच्चा के के उवसामगो कहिं ति विहासा । ९ ७६. एदस्स गाहापच्छद्धस्स एहिमत्थविहासा अहिकीरदि ति भणिदं होइ । * ण ताव अंतरं उवसामगो वा पुरदो होहिदि त्ति ।
किंतु
७७. ण ताव इदानीमंतरकरणमुपशमकत्वं वा दर्शनमोहस्य विद्यते, तदुभयं पुरस्तादनिवृत्तिकरणं प्रविष्टस्य भविष्यतीत्ययमत्र सूत्रार्थसद्भावः । एवं तदियTerr अत्थविहासा समत्ता ।
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[ सम्मत्ताणियोगद्दारं १०
$ ७८. संपहि चउत्थगाहाए अत्थ विहासणट्ठमिदमाह -
प्रचला इनमें से किसी एक प्रकृतिके साथ पाँच प्रकृतियोंका वेदक कहा है । धवला टीकाका वह उल्लेख इस प्रकार है
चक्खुदंसणावरणीयमचक्खुदंसणावरणीय मोहिदंसणावरणीय केवलदंसणावरणीयमिदि दुहं दंसणावरणीयाणं वेदगो, णिद्दा-पयलाणं एक्कदरेण सह पंचण्हं वा वेदगो ।
२. मोहनीयकर्मके प्रसंगसे यहाँ मोहनीय कर्मकी सभी प्रकृतियोंका उदय बतलाया है। सो उसका यह आशय है कि उक्त जीवके सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्प्रकृतिको छोड़कर आगमानुसार सभी प्रकृतियोंका उदय सम्भव है । यथा - मिथ्यात्व, चारों क्रोध, या चारों मान, या चारों माया या चारों लोभ, तीन वेदोंमें से कोई एक वेद, हास्य- रति और अरति-शोक इन दो युगलों में से कोई एक युगल तथा भय और जुगुप्सा इस प्रकार १० का, या भय
समें एक विना ९ का, या दोनोंके बिना ८ का उदय होता है ।
३. दूसरे यहाँ उदयागत प्रकृतियोंके अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका उदय बतलाया है, किन्तु धवला टीका में उदयगत प्रकृतियोंके अजघन्य - अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका वेदक बतलाया है । यथाउदइल्लाणं पयडीणमजहण्णाणुक्कस्सपदेसाणं वेदगो ।
_ ७५. अब उसके उत्तरार्धके अर्थकां विशेष व्याख्यान करनेके लिये इस सूत्रको कहते हैं
* उक्त जीव 'अन्तर कहाँ पर करता है और कहाँ पर किन-किन कर्मोंका उप'शामक होता है' इस पदकी विभाषा ।
७६. तीसरी गाथाके इस उत्तरार्धके अर्थका इस समय विशेष व्याख्यान अधिकार प्राप्त है यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
* अधःप्रवृत्तकरणके प्रथम समयमें न तो अन्तरकरण होता है और न ही यहाँ पर वह उपशामक होता है, आगे जाकर ये दोनों कार्य होंगे ।
$ ७७. इस समय दर्शनमोहका न तो अन्तरकरण होता है और न ही उपशामकपना ही पाया जाता है, किन्तु ये दोनों आगे अनिवृत्तिकरणमें प्रविष्ट हुए जीवके होंगे यह यहाँ सूत्रके अर्थका तात्पर्य है । इस प्रकार तीसरी गाथाके अर्थका विशेष व्याख्यान समाप्त हुआ । $ ७८. अब चौथी गाथाके अर्थका विशेष व्याख्यान करनेके लिये इस सूत्रको
कहते हैं