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गाथा ९४ ]
दसणमोहोवसामणा * काणि वा पुव्वबद्धाणि त्ति विहासा।
5 २७. 'काणि वा पुव्वबद्धाणि' त्ति जं विदियगाहाए पढमं बीजपदं तस्सेदाणिमत्थविहासा पत्तावसरा त्ति वुत्तं होइ ।
* एत्थ पयडिसंतकम्मं ट्ठिदिसंतकम्ममणुभागसंतकम्मं पदेससंतकम्मं च मग्गियव्वं ।
२८. एदम्मि पदे सव्वकम्मविसयाणं पयडि-द्विदि-अणुभाग-पदेससंतकम्माणं मग्गणा कायव्वा त्ति वुत्तं होइ । संपहि एदं बीजपदं णिबंधणं कादण चउण्हमेदेसिं संतकम्माणं मग्गणं कस्सामो। तं जहा-तत्थ ताव पयडिसंतकम्ममणुमग्गिज्जदे । मूलपयडीणमट्टण्हं पि संतकम्मसरूवेणेत्थ संभवो अत्थि । उत्तरपयडीणं पि ही कथन किया गया है इतना यहाँ विशेष समझना चाहिए । यहाँ एक यह प्रश्न भी उठाया गया है कि गाथासूत्रके परिणामो केरिसो हवे' इस वचनमें जो परिणाम पद आया है उसीसे योग, कषाय, उपयोग, लेश्या और वेदका ग्रहण हो जाता है, ऐसी अवस्था में इन सब भेदोंका अलगसे उल्लेख करनेकी आवश्यकता नहीं थी। इसका समाधान यहकर किया गया है कि उक्त वचनमें परिणाम पद केवल संक्लेश और विशुद्धिको सूचित करनेके लिये आया है, इसलिये उक्त भेदोंका अलगसे निर्देश किया गया है। इसके बाद टीकामें यह बतलाया गया है कि यह सूत्र देशामर्षक है, इसलिए जो अनुक्त मार्गणाऐं यहाँ सम्भव हों उन्हें भी जान लेना चाहिए। यथा-गतिमागणाकी अपेक्षा तियञ्च, नारकी, मनुष्य और देव चारों गतियोंमें प्रथम सम्यक्त्वकी उत्पत्ति सम्भव है। इन्द्रिय मार्गणाकी अपेक्षा पञ्चेन्द्रिय, कायमार्गणाकी अपेक्षा त्रसकायिक, संयम मार्गणाकी अपेक्षा असंयमी, भव्यमार्गणाकी अपेक्षा भव्य, सम्यक्त्व मार्गणाकी अपेक्षा मिथ्यादृष्टि, संज्ञीमार्गणाकी अपेक्षा संज्ञी और आहार मार्गणाकी अपेक्षा आहारक जीव ही प्रथम सम्यक्त्वके ग्रहणके योग्य है, अन्य नहीं। अन्त में यह सूचित किया गया है कि जो करणलब्धि द्वारा प्रथम सम्यक्त्वके सन्मुख होता है उसके क्षयोपशम आदि चार लब्धियोंका सद्भाव नियमसे होता है । इसका आशय यह है कि जिसने परमार्थ स्वरूप देव, गुरु और आगमके प्रति श्रद्धावनत हो गुरुमुखसे तत्त्वार्थका उपदेश ग्रहण किया है और जो तत्प्रायोग्य विशद्धि सम्पन्न हो क्षयोपशम आदि लब्धियोंसे वर्तमानमें युक्त है वहीं आत्मसन्मुख हो अधःकरण आदि परिणाम प्राप्त करनेका अधिकारी है, अन्य नहीं।
* 'पूर्वमें बंधे हुए कर्म कौन-कौन हैं इस पदकी विभाषा ।
$२७. काणि वा पुव्वबद्धाणि' यह जो दूसरी गाथाका प्रथम बीजपद है उसके अर्थका विशेष व्याख्यान इस समय अवसर प्राप्त है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। ___ * यहाँ पर प्रकृतिसत्कर्म, स्थितिसत्कर्म, अनुभागसत्कर्म और प्रदेशसत्कर्मका मार्गण करना चाहिए।
२८. इस पदमें सभी कर्मविषयक प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशसत्कर्मोंका मार्गण करना चाहिए यह कथन किया गया है
रना चाहिए यह कथन किया गया है। अब इस बीजपदको निमित्त कर इन चारों प्रकारके सत्कर्मोका मार्गण करेंगे। यथा-उनमेंसे सर्वप्रथम प्रकृति सत्कर्मका मार्गण करते हैं। आठों ही मूलप्रकृतियाँ सत्कर्मरूपसे यहाँ पर सम्भव हैं। उत्तर प्रकृतियों में भी ज्ञानावरणकी