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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [सम्मत्ताणियोगदारं १० * तं जहा। $ १२. सुगमोऽयं यथाप्रतिज्ञातार्थविषयः प्रश्नोपन्यासः । * परिणामो विसुद्धो।।
६ १३. दंसणमोहउवसामगस्स परिणामो विसुद्धो चेव होइ, गाविसुद्धो त्ति सुत्तत्थसंबंधो। विशुद्धतरोऽस्य परिणाम इत्युक्तं भवति । अधःप्रवृत्तकरणप्रथमसयमधिकृत्यैतत्प्रतिपादितं भवति । न केवलमधःप्रवृत्तकरणप्रारंभसमय एवास्य परिणामो विशुद्धिकोटिमवगाढः, अपि तु प्रागप्यन्तर्मुहूर्तात्प्रभृति विशुध्यन्नेवायमागत इति प्रदर्शनार्थमुत्तरसूत्रमासूत्रयत् सूत्रकारः___ * पुव्वं पि अंतोमुहुत्तप्पहुडि अणंतगुणाए विसोहीए विसुज्झमाणो आगदो।
१४. कुत एवमिति चेत् ? मिथ्यात्वग दतिदुस्तरादात्मानमुद्धर्तुमनसोऽस्य सम्यक्त्वरत्नमलब्धपूर्वमासिसादयिषोः प्रतिक्षणं क्षयोपशमोपदेशलब्ध्यादिभिरुपबृंहितसामर्थ्यस्य संवेग-निर्वेदाभ्यामुपर्युपरि उपचीयमानहर्षस्य समयं प्रत्यनन्तगुणविशुद्धिप्रतिपत्तेरविप्रतिषेधात् ।
* वह जैसे। ६ १२. यथा प्रतिज्ञात अर्थको विषय करनेवाला यह प्रश्नका उपन्यास सुगम है। * परिणाम विशुद्ध होता है। .
६ १३. दर्शनमोहके उपशामकका परिणाम विशुद्ध ही होता है, अविशुद्ध नहीं होता इस प्रकार सूत्रका अथके साथ सम्बन्ध है । इसका परिणाम विशुद्धतर होता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । अधःप्रवृत्तकरणके प्रथम समयको अधिकृत कर यह कहा है। केवल अधःप्रवृत्तकरणके प्रारम्भके समयमें ही इसका परिणाम विशुद्धिरूप कोटिको स्पर्श नहीं करता, किन्तु इसके पूर्व ही अन्तर्मुहूर्तसे लेकर विशुद्ध होता हुआ वह आया है इस बातको बतलानेके लिये सूत्रकारने इस सूत्रकी रचना की है
* अधःप्रवृत्तकरणके पूर्व ही अन्तर्मुहूर्तसे लेकर अनन्तगुणी विशुद्धिसे विशुद्ध होता हुआ वह आया है।
5 १४. शंका-ऐसा किस कारणसे है ?
समाधान-क्योंकि जो अति दुस्तर मिथ्यात्वरूपी गर्तसे उद्धार पानेके मनवाला है, जो अलब्धपूर्व सम्यक्त्वरूपी रत्नको प्राप्त करनेकी तीव्र इच्छावाला है, जो प्रति समय क्षयोपशमलब्धि और देशनालब्धि आदिके बलसे वृद्धिंगत सामर्थ्यवाला है और जिसके संवेग
और निर्वेदके द्वारा उत्तरोत्तर हर्ष में वृद्धि हो रही है उसके प्रति समय अनन्तगुणी विशुद्धिकी प्राप्ति होनेका निषेध नहीं है।
विशेषार्थ-संसारी जीवके मिथ्यात्वको भूमिकामें सम्यग्दर्शनको प्राप्त करनेके सन्मुख होनेकी पूर्व तैयारी किस प्रकारकी होती है यह यहाँ स्पष्टरूपसे बतलाया गया है। संसार