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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ सम्मत्ताणियोगहारं १० ७. एसा तदियसुत्तगाहा पुव्वद्धेण सव्वेसि कम्माणं पयडि-द्विदि-अणुभागपदेसविसेसिदबंधोदएहिं झीणाझीणत्तगवेसणट्ठमागया। के कर्मांशाः प्रकृति-स्थित्यनुभवे-प्रदेशविशेषिताः दर्शनमोहोपशमनोन्मुखावस्थायां पूर्वमेव भीयन्ते, के वा न क्षीयन्त इति सूत्रे पदसम्बन्धावलंबनात् । तहा पच्छद्धेण वि पुरदो भविस्समाणमंतरं कम्हि उद्देसे होइ, केसि वा कम्माणं कम्हि उद्देसे एसो उवसामगो होदि त्ति एवंविहस्स अत्थविसेसस्स पुच्छामुहेण परूवणाए पडिबद्धा । एवंविहाणं च पुच्छाणिद्देसाणं णिरारेगीकरणमुवरि चुण्णिसुत्तसंबंधेण कस्सामो । संपहि जहावसरपत्ताए चउत्थगाहाए एसो अवयारो(४१) किं टिदियाणि कम्माणि अणुभागेमु केसु वा।
ओवहिदूण सेसाणि कं ठाणं पडिवज्जदि ॥४॥
$ ८. एदिस्से चउत्थगाहाए पुव्वद्धण विदियगाहाए परूविदद्विदि-अणुभागसंतकम्माणं पुच्छामुहेणाणुवादं कादूर्ण तदो पच्छद्रेण हिदि-अणुभागखंडयपरूवणाए बीजपदमुवइ8 । दसणमोहउवसामगो कम्हि उद्देसे काणि हिदि-अणुभागविसेसिदाणि कम्माणि ओवट्टेयूण कं ठाणमवसेसं पडिवज्जइ, द्विदीए केत्तिए भागे विणासेयूण कइत्थं भागं उपशामक होता है ? ॥१३॥
$ ७. यह तीसरी गाथा पूर्वार्ध द्वारा सभी कर्मोके प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशविशिष्ट बन्ध और उदयरूपसे झीण-अक्षीणपनेके अनुसन्धान करनेके लिए आई है। प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशविशिष्ट कौनसे कांश दर्शनमोहके उपशनके सन्मुख होनेकी अवस्था में पहले ही क्षीण हो जाते हैं और कौनसे कर्म क्षीण नहीं होते हैं इस प्रकार सूत्रमें पदोंके सम्बन्धका अवलम्बन लिया है। तथा उत्तरार्धद्वारा भी आगे होनेवाला अन्तर किस स्थान पर होता है और किन कर्मोंका किस स्थानपर यह उपशामक होता है इस तरह इस प्रकारका अर्थविशेष पृच्छाद्वारा प्ररूपणामें प्रतिबद्ध है। तथा इस प्रकारके पृच्छानिर्देशोंका खुलासा आगे चूर्णिसूत्रके सम्बन्धसे करेंगे। अब क्रमसे अवसर प्राप्त चौथी गाथाका यह निर्देश है
__* दर्शनमोहका उपशम करनेवाला जीव किस स्थितिवाले कर्मोंका तथा किन अनुभागोंमें स्थित कर्मोंका अपवर्तन करके शेष रहे उनके किस स्थानको प्राप्त होता है ॥१४॥
८. इस चौथी गाथाके पूर्वार्धद्वारा दूसरी गाथामें कहे गये स्थितिसत्कर्मों और अनुभाग सत्कर्मोंका पृच्छाद्वारा अनुवाद करके अनन्तर उत्तरार्ध द्वारा स्थितिकाण्डक और अनुभागकाण्डकसम्बन्धी प्ररूपणाके बीजपदका निर्देश किया है। दर्शनमोहका उपशामक जीव किस स्थानपर स्थितिविशेष और अनुभागविशेषसे युक्त किन कर्मोंका अपवर्तन कर अवशिष्ट किस स्थानको प्राप्त होता है, क्योंकि स्थितिके कितने भागोंका विनाश कर कितने
१. ता०प्रतौ -स्थित्यनुभाव इति पाठः ।