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थागा ९३ ]
दंसणमोहोवसामणां
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कम्माणं पयडि-ट्ठिदि-अणु भाग-पदेससंतकम्मपरूवणाए पडिबद्धो । कधं पुण 'काणि वा पुव्वबद्धाणि' ति सामण्णणिदेसेण पयडि-ट्ठिदि- अणुभाग-पदेसविसेसोवलद्धी होदित्ति ? दमेत्थासंकणिज्जं, सामण्णणिसे सव्वेसिं विसेसाणं संगहे विरोहाभावादो । 'के वा अंसे णिबंधदि' ति एसो सुत्तस्स विदियावयवो तेसिं चेत्र पयडि-ट्ठिदि-अणुभाग-पदेसविसेसियणवगबंधसरूवणिरूवडमोइण्णो, अंससद्दस्स पयडि-हिदि-अणुभाग-पदेसविसेसवाचिणो इह गहणादो । 'कदि आवलियं पविसंति त्ति एसो सुत्तस्स तदियावयवो सव्वेसिमेव कम्माणं मूलुत्तरपयडिमेयभिण्णाणं ट्ठिदिक्खयजणिदोदयावलिय पवेसगवेसणवणवद्धो । उदयाणुदयसरूवेण उदयावलियं पविसमाणपयडिगवेसणे एसो सुत्तावयवो पडिबद्धो त्ति भावत्थो । 'कदिण्डं वा पवेसगो' एसो चउत्थो गाहासुतावयवो सव्वेसिं कम्माणमुदीरणामुहेण उदयावलियं पवेसिज्जमाणपयडीणं परूवणाए पडिबद्धो । एदं च सव्वं पुच्छासुतं । एदिस्से पुच्छाए णिण्णयमुवरि चुण्णिसुत्तसंबंघेण कस्सामो । संपहि तदियगाहाए अवयारं कस्सामो ।
(४०) के अंसे झीयदे पुव्वं बंधेण उदएण वा ।
अंतरं वा कहिं किच्चा के के उवसामगो कहिं ॥ ६३ ॥
गाथासूत्रका प्रथम अवयव सभी कर्मोंके प्रकृतिसत्कर्म, स्थितिसत्कर्म, अनुभागसत्कर्म और प्रदेशसत्कर्मके कथन करनेमें प्रतिबद्ध है ।
शंका- 'पूर्वबद्ध कर्म कौन हैं' इस प्रकार सामान्य निर्देश द्वारा प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशविशेषकी उपलब्धि कैसे होती है ?
समाधान – यहाँ ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए, सामान्य निर्देशमें सभी विशेषोंका संग्रह होने में कोई विरोध नहीं आता ।
'के वा अंसे णिबंधदि' यह गाथासूत्रका दूसरा अवयव उन्हीं कर्मोंके प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशविशेषरूप नवकबन्धके स्वरूपके निरूपणके लिये आया है, क्योंकि यहाँ पर अंश शब्द प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशविशेषका वाची ग्रहण किया गया है । 'कदि आवलियं पविसंति' यह गाथासूत्रका तीसरा अवयव मूल और उत्तर प्रकृतियोंके भेदसे अनेक प्रकारके सभी कर्मों के स्थितिक्षयजन्य उदयावलिप्रवेशके अनुसंधानके लिये निबद्ध किया गया है । उदय और अनुदयरूपसे उदयावलिमें प्रवेश करनेवाली प्रकृतियोंके अनुसंधान में गाथासूत्रका यह अवयव प्रतिबद्ध है यह इसका भावार्थ है । 'कदिण्डं वा पवेसगो' गाथासूत्रका यह चौथा अवयव सभी कर्मोंकी उदीरणा द्वारा उदयावलिमें प्रविष्ट कराई जानेवाली प्रकृतियोंकी प्ररूपणामें प्रतिबद्ध है । यह सब पृच्छासूत्र है। इस पृच्छाका निर्णय आगे चूर्णिसूत्रके सम्बन्धसे करेंगे । अब तीसरी गाथाका अवतार करते हैं
दर्शनमोहके उपशमके सन्मुख होनेपर पूर्व ही बन्ध और उदयरूपसे कौनसे कर्मांश क्षीण होते हैं ? आगे चलकर अन्तरको कहाँ पर करता है और कहाँ पर किन-किन कर्मोंका
१. ता० प्रती - गवेसणो इति पाठः ।