________________
गाथा ९१] दसणमोहोवसामणा
१९५ परूवेयव्वा, तत्थेव सम्मत्तुप्पत्तिववहारस्स रूढत्तादो। तत्थ य पण्णारस सुत्तगाहाओ गुणहराइरियमुहकमलविणिग्गयाओ पडिबद्धाओ। तत्थ वि तिण्णि करणाणि अधापवत्तकरणादिभेदेण । तेसिं लक्खणं पुरदो भणिस्सामो।
३. तत्थ ताव अधापवत्तकरणे इमाओ चत्तारि सुत्तगाहाओ पण्णारस-मूलगाहाबहिन्भूदाओ। तस्सेव दंसणमोहोवसामगस्स तदहिमुहावत्थापरूवणप्पियाओ पुव्वमेत्थ परूवेयव्याओ, तप्परूवणाए विणा पण्णारसमूलगाहाणमत्थविहासाए अणवयारादो ति एत्थ जइ वि सामण्णेण अधापवत्तकरणे इमाओ सुत्तगाहाओ परूवेयव्वाओ त्ति वुत्तं . तो वि अधापवत्तकरणपढमसमए इमाओ परूवेयव्वाओ त्ति वक्खाणेयव्वं । कुदो ? एदाओ चत्तारि सुत्तगाहाओ अधापवत्तकरणपढमसमए परूविदाओ त्ति पुरदो भणिस्समाणचुण्णिसुत्तणिबंधोवसंहारवक्कादो तारिसविसेसणिण्णयोवलद्धीए । संपहि काओ ताओ गाहाओ त्ति आसंकाए पुच्छापुव्वमुत्तरं पबंधमाह
* तं जहा।
६४. सुगममेदं गाहासुत्तावयारावेक्खं पुच्छावक्कं । एवं पुच्छाविसईकयाणं गाहासुत्ताणं जहाकममेसो सरूवणिद्देसो(३८) दंसणमोहउवसामगस्स परिणामो केरिसो भवे ।
जोगे कसायउवजोगे लेस्सा वेदो य को भवे ॥१॥ मोहोपशामनाका सर्वप्रथम कथन करना चाहिए, क्योंकि सम्यक्त्वकी उत्पत्तिरूप व्यवहार उसीमें रूढ़ है । उसमें गुणधर आचार्यके मुखकमलसे निकली हुई पन्द्रह सूत्रगाथाएं प्रतिबद्ध हैं। उसमें भी अधःप्रवृत्तकरण आदिके भेदसे ये तीन करण होते हैं। उनके लक्षणोंका कथन आगे करेंगे।
३. उनमें सर्वप्रथम अधःप्रवृत्तकरणके विषयमें ये चार सूत्रगाथाएं हैं जो पन्द्रह मूल गाथाओंसे बहिर्भूत हैं । वे दर्शनमोहका उपशम करनेवाले उसी जीवके उसके अभिमुख होनेरूप अवस्थाका प्ररूपण करती हैं, उनका सर्वप्रथम यहाँ प्ररूपण करना चाहिए, क्योंकि उनका प्ररूपण किये विना पन्द्रह मूलगाथाओंके अर्थका विशेष व्याख्यान नहीं हो सकता । इस प्रकार यहाँपर यद्यपि अधःप्रवृत्तकरणके विषयमें इन सूत्रगाथाओंका कथन करना चाहिए ऐसा सामान्यरूपसे कहा है तो भी अधःप्रवृत्तकरणके प्रथम समयमें इनका कथन करना चाहिए ऐसा व्याख्यान करना चाहिए, क्योंकि ये चार सूत्रगाथाएं अधःप्रवृत्तकरणके प्रथम समयके विषयमें कही गई हैं ऐसा आगे कहे जानेवाले चूर्णिसूत्रसम्बन्धी उपसंहार वाक्यसे उक्त प्रकारके विशेष निर्णयको उपलब्धि होती है। अब वे कौन-सी गाथाएँ हैं ऐसी आशंका होनेपर पृच्छापूर्वक उत्तर प्रबन्धको कहते हैं- .
* वह जैसे ।
६४. गाथासूत्रोंके अवतारकी अपेक्षा रखनेवाला यह पृच्छावाक्य सुगम है। इस प्रकार पृच्छाके विषयरूपसे विवक्षित गाथासूत्रोंका क्रमसे यह स्वरूपनिर्देश है।
* दर्शनमोहका उपशम करनेवाले जीवका परिणाम कैसा होता है, किस योग, कषाय और उपयोगमें विद्यमान उसके कौनसी लेश्या और वेद होता है ॥९१॥