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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [चउट्ठाणं ८ मार्थः १ दुराराधत्वम् । एवं जिह्वव जिह्वेत्यसंतोषसाधर्म्यमाश्रित्य लोभपर्यायत्वं वक्तव्यम् । एवमेते लोभकषायस्य विंशतिरेकार्थाः पर्यायाः शब्दाः व्याख्याताः ।
कामो रागनिदाने छंद सुता प्रेय दोषनामानः । स्नेहानुराग आशा मूर्च्छच्छागृद्धिसंज्ञाश्च ॥ ४ ॥ साशता प्रार्थना तृष्णा लालसाविरतिस्तथा । विद्या जिह्वा च लोभस्य पर्यायाः विंशतिः स्मृताः ॥ ५ ॥
. एवं वंजणे ति समत्तमणिओगद्दारं ।
ऐसा वचन भी है । अथवा विद्याके समान होनेसे लोभका नाम विद्या है।
शंका-प्रकृतमें उपमारूप अर्थ क्या है ? .. समाधान दुराराधपना प्रकृतमें उपमार्थ है। अर्थात् जिस प्रकार विद्याकी आराधना कष्टसाध्य होती है उसी प्रकार लोभका आलम्बनभूत भोगोपभोग कष्टसाध्य होनेसे प्रकृतमें लोभको कष्टसाध्य कहा गया है।
इसी प्रकार लोभ जिह्वाके समान होनेसे जिह्वास्वरूप है, यहाँ असंतोषरूप साधर्म्यका आश्रयकर जिह्वा लोभका पर्यायवाची नाम है ऐसा कहना चाहिए। इस प्रकार लोभके इन एकार्थवाची शब्दोंका व्याख्यान किया।
काम, राग, निदान, छन्द, सुत, प्रेय, दोष, स्नेह, अनुराग, आशा, मूर्छा, इच्छा, गृद्धि, साशत, प्रार्थना, तृष्णा, लालसा, अविरति, विद्या और जिह्वा ये बीस लोभके पर्यायवाची नाम स्मृत किये गये हैं।
इस प्रकार व्यंजन नामका अनुयोगद्वार समाप्त हुआ।