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गाथा ८५..]
सुत्तविभास
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पडिबद्धत्तदंसणादोत्ति णासंकणिज्जं णिदरिसणोवणयहं कीरमाणमेदणिसस्स वि तव्विसयत्तेण तहाभावोवयारादो । को णिदरिसणोवणयो नाम : णिदरिसणं दिहंतो उदाहरणमिदि यो । णिदरिसणस्स उवणओ णिदरिसणोवणओ, दिट्ठतमु हेण त्थ साधणमिदि भणिदं होइ । तत्थ ताव कदमेण साधम्मेण केसि द्वाणाणं णिदरिसणोवणओ एत्थ विवक्खिओ ति एदस्स जाणावणडुमुत्तरमुत्तद्दय मोइण्णं—
* कोहट्ठाणं चउण्हं पि कालेण णिदरिसणउवणओ कओ ।
$ ४९. कोहकसायस्स ताव चउन्हं पि द्वाणाणं णग - पुढविसमाणादिभेदेण जो णिदरिसणोवणओ कओ सो कालेण कालसाहम्ममासेज कओ त्ति वृत्तं होइ, चिराचिरतदवड्डाणकालसाहम्मावेक्खाए तत्थ तहाभूदणिदरिसणस्स उवणीदत्तादो । एदस्स पुण णिण्णय मुवरिमचुण्णिसुत्तसंबंधेण कस्सामो ।
* सेसाणं कसायाणं बारसण्हं द्वाणाणं भावदो णिदरिसणउवणभो कओ ।
यह कैसे बन सकता है, क्योंकि तीन सूत्रगाथाएं ही उक्त अर्थमें प्रतिबद्ध देखी जाती हैं ? समाधान—ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि उदाहरणोंद्वारा साधन
करनेके लिये जो भेदोंका निर्देश किया गया है वह भी प्रकृत अर्थको विषय करता है, इसलिये उस प्रकार के भावका उपचार किया गया है ।
शंका - निदर्शनोपनय किसे कहते हैं ?
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समाधान -- निदर्शन, दृष्टान्त और उदाहरण ये एकार्थवाची शब्द हैं । निदर्शनके उपनयको निदर्शनोपनय कहते हैं, अर्थात् दृष्टान्तोंद्वारा अर्थका साधन करना यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
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उनमें से सर्वप्रथम किस साधर्म्यद्वारा किन स्थानोंका उदाहरणपूर्वक अर्थसाधन यहाँ किया गया है, इस प्रकार इस बातका ज्ञान करानेके लिये आगेके दो सूत्र अवतीर्ण हुए हैं* चारों ही क्रोध-स्थानोंका कालकी मुख्यतासे उदाहरण पूर्वक अर्थसाधन किया गया है ।
$ ४९. क्रोध कषायके तो चारों ही स्थानोंका नगसमान और पृथिवीसमान आदि भेदरूपसे जो उदाहरणपूर्वक अर्थसाधन किया गया है वह 'कालेण' अर्थात् कालविषयक साधर्म्यका आश्रय लेकर किया गया है यह उक्त कथनका तात्पर्य है, क्योंकि चिरकाल और अचिरकाल तक जो क्रोधका अवस्थान होता है उसका इस प्रकारके कालके साथ साधर्म्य बन जानेसे इस अपेक्षासे क्रोधकषायके भेदोमें उस प्रकारके उदाहरण संग्रह किये गये हैं । परन्तु इसका निर्णय आगे आनेवाले चूर्णिसूत्रोंके सम्बन्धसे करेंगे ।
* शेष कषायोंके बारह स्थानोंका भावकी मुख्यतासे उदाहरणपूर्वक अर्थ - साधन किया गया है ।