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१७८ जयधवलासहिदे कायपाहुडे
[चउहाणं८ सुत्तविहासावसरे चेय द्वाणणिक्खेवं णयपरूवणाणुगयं कादण संपहि गाहासुत्ताणमत्थविहासणं कुणमाणो चुण्णिसुत्तयारो इदमाह
* एत्तो सुत्तविहासा।
६४६. पुव्वं सुत्तविहासं पइण्णाय तमपरूविय णिक्खेवो काउमाढत्तो। तदो तेणंतरिदाये तिस्से पुणो वि अणुसंधाणं कादूण तप्परूवणमिदं सुत्तमारद्धं ।
* तं जहा।
४७. सुगम ।
* आदीदो चत्तारि सुत्तगाहाओ एदेसिं सोलसराहं हाणाणं णिवरिसणउवणये।
४८. तत्थ ताव आदीदो पहुडि चत्तारि सुत्तगाहाओ विहासिज्जते । ताओ पुण कम्हि अत्थविसेसे पडिबद्धाओ ति आसंकाए इदमुत्तरं 'एदेसिं सोलसण्हं हाणाणं णिदरिसणोवणए पडिबद्धाओ त्ति' पढमगाहाए कयमेदणिद्देसाणं सोलसण्हं हाणाणं सेसगाहाहिं तीहिं णिदरिसणोवणयस्स परिप्फुडमुवलंभादो। जइ एवं चत्तारि सुत्तगाहाओ णिदरिसणोवणए पडिबद्धाओ ति कथमिदं घडदे, तिण्हमेव सुत्तगाहाणं तत्थ अवस्थान देखा जाता है। इस प्रकार सर्वप्रथम गाथासूत्रोंके विशेष व्याख्यानके अवसरपर ही नयप्ररूपणासे अनुगत स्थानविषयक निक्षेपप्ररूपणा करके अब गाथासूत्रोंका विशेष व्याख्यान करते हुए चूर्णिसूत्रकार इस सूत्रको कहते हैं
* इससे आगे गाथासूत्रोंकी विभाषा करते हैं ।
$ ४६. पूर्वमें गाथासूत्रोंके विशेष व्याख्यानकी प्रतिज्ञा करके उसकी प्ररूपणा किये विना निक्षेप करनेके लिये आरम्भ किया । इसलिये उसके बाद उसका फिर भी अनुसन्धान करके उसका कथन करनेके लिये इस सूत्रका आरम्भ किया है।
* वह जैसे ? $ ४७. यह सूत्र सुगम है।
* आदिसे लेकर चार सूत्र गाथाएँ इन सोलह स्थानोंके उदाहरणपूर्वक अर्थ साधन करनेमें आई हैं।
४८. उनमेंसे सर्वप्रथम आदिसे लेकर चार सूत्रगाथाओंका विशेष व्याख्यान करते हैं । परन्तु वे चारों सूत्रगाथाएँ किस अर्थमें प्रतिबद्ध हैं ऐसी आशंका होनेपर यह उत्तर दिया है-इन सोलह स्थानोंके उदाहरणपूर्वक अर्थसाधनमें प्रतिबद्ध हैं, क्योंकि प्रथम गाथाद्वारा जिन भेदोंका निर्देश किया गया है ऐसे सोलह स्थानोंका शेष तीन गाथाओंद्वारा उदाहरणपूर्वक अर्थसाधन स्पष्टरूपसे उपलब्ध होता है।
शंका-यदि ऐसा है तो चार सूत्रगाथाएँ उदाहरणपूर्वक अर्थसाधनमें प्रतिबद्ध हैं १. ता०प्रतौ काल (किमट्ठ) माढत्तो इति पाठः । २. ता प्रती त्ति पढ़मगाहा पढमगाहाए इति पाठः ।