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जयधवलास हिदे कसायपाहुडे
[ चउट्ठा ८
लब्भंति । एवमिंदियादिमग्गणासु वि जाणियूण पयदपरूवणा कायव्वा । तदो सोलसण्डं गाहात्ताणं समुक्तिणा समत्ता भवदि ।
* एदं सुतं ।
$ ३४. एवमेदं सोलससंखाविसेसिदं गाहासुत्तं समुक्कित्तिदमिदि वृत्तं हो । * एत्थ अत्थविहासा ।
३५. एवं समुक्कित्तिदाणं गाहासुत्ताणमेतो अत्थविहासा कीरदि त्ति भणिदं हो । तत्थ ताव पुव्यमेव चउट्ठाणे ति पदस्स णिक्खेवपरूवणद्वमुवरिमं सुत्तपबंधमाह - * चउठ्ठाणे ति एक्कगणिक्खेवो च द्वाणणिक्खेवो च ।
$ ३६. 'चउट्ठाणस्से' ति पदस्स अत्थविसयणिण्णयजणणमेत्थ णिक्खेवो कीरदे । सो चणिक्खेवो दम्म विसए दुविहो होइ - 'णिक्खेवो द्वाणणिक्खेवो' इदि । तत्थ एक्कगणिक्खेवो णाम चदुसदस्स अत्थभावेण विवक्खियाणं लदास माणादिट्ठाणाणं कोहादिकसायाणं वा एक्केक्कं घेत्तूण णाम- दुवणादिभेदेण णिक्खेवपरूवणा । द्वाणणिक्खेवो नाम तेसिं अन्योगाढसरूवेण विविक्खियाणं वाचओ जो द्वाणसद्दो तस्स अत्थविसयणिण्णयजणणङ्कं णाम- दुवणादिभेदेण परूवणा । एवमेदेसु दोसु णिक्खेवेसु एकगणिraat youमेव गयत्थो त्ति जाणावेमाणो इदमाह -
मनुष्यगति के सिवाय अन्य उक्त दो गतियोंमें केवल एकस्थानीय अनुभागका बन्ध और उदय नहीं प्राप्त होता । इसी प्रकार इन्द्रिय आदि मार्गणाओंमें भी जानकर प्रकृत प्ररूपणा करनी चाहिए । इस प्रकार इतने कथनके बाद सोलह गाथासूत्रों की समुत्कीर्तना समाप्त होती है ।
* यह गाथासूत्र है ।
$ ३४. इस प्रकार सोलह संख्या विशिष्ट इस गाथासूत्रका समुत्कीर्तन किया यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
* अब इसकी ( सोलह संख्याविशिष्ट इस गाथासूत्रकी ) अर्थविभाषा करते हैं ।
$ ३५. इस प्रकार उल्लिखित किये गये इन गाथासूत्रोंकी आगे अर्थविभाषा करते हैं। यह उक्त कथनका तात्पर्य है । उसमें सर्व प्रथम पहले ही 'चतुःस्थान' इस पदविषयक निक्षेपका कथन करनेके लिये आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं
* 'चतुःस्थान' इस पदका एकैकनिक्षेप और स्थाननिक्षेप करना चाहिए ।
३६. चतुःस्थान इस पदका अर्थविषयक निर्णय उत्पन्न करनेके लिये यहाँपर निक्षेप करते हैं और वह निक्षेप इस विषय में दो प्रकारका है -- एकैकनिक्षेप और स्थाननिक्षेप | उनमें से 'चतुः' शब्द के अर्थरूपसे विवक्षित लतासमान और दारुसमान आदि स्थानोंकी अथवा क्रोधादि कषायोंकी, एक-एकको ग्रहणकर नाम और स्थापना आदिके भेदसे निक्षेपरूप प्ररूपणा करना एकैकनिक्षेप है । तथा परस्पर मिलितरूपसे विवक्षित उन्हींका वाचक जो 'स्थान' शब्द है उसके अर्थविषयक निर्णयका ज्ञान करनेके लिये नाम और स्थापना आदि के भेद से प्ररूपणा करना स्थाननिक्षेप है । इस प्रकार इन दो निक्षेपोंमेंसे एकैकनिक्षेप पूर्व में ही गतार्थ है इस बातका ज्ञान कराते हुए इस सूत्र को कहते हैं