________________
णिक्खेववत्थपरूवणा
* एक्कगं पुत्र्वणिक्खित्तं पुव्वपरूविदं च ।
$ ३७. एत्थ एकगसद्देण कोहादीणमेक्वेक्कस्स कसायस्स वा गहणं लदासमाणादीर्ण वा द्वाणाणमेगेगस्स णिरुद्धट्ठाणस्स गहणमिदि । तत्थ जइ ताव कोहादीणमेगेगस्स कसायस्स गहणमिह विवक्खियं तो एक्कगं पुव्वणिक्खित्तं पुव्वपरूविदं चेदि, दाणिं तणिक्खेव परूवणा वा अहिकीरदे । किं कारणं ? गंथस्सादीए कस । यणिक्खेवाबसरे कोहादिकसायाणं पादेकं णाम-दुवणादिभेदेण बहुवित्थरेण णिक्खित्तत्तादो, पेजदोसादिअणियोगद्दारेसु तेसिं पबंधेण परूविदत्तादो च । अह जड़ लदासमाणादि
I
पक्कं गहणं विवक्खियं तो वि एकगं पुव्वणिक्खित्तं पुण्वपरूविदं चैव भवदि । तं कथं ? लदासमाणादिभेयभिण्णस्स माणस्स णिक्खेवो कीरमाणो सामण्णमाणणिक्खेवेणेव गयत्थो होइ, सामण्णादो एयंतेण पुधभूदविसेसाणुवलंभादो | एवं कोहादीणं पि णग - पुढविआदीहिं विसेसिदाणमेहि कीरमाणो णिक्खेवो सामण्णकोहादिणिक्खेवेणेव पुव्वपरूविदेण गयत्थो ति एवमेक्कगणिक्खेवं पुव्वपरूविदत्तादो समुज्झियूण द्वाणणिक्खेवं करेमाणो इदमाह–
गाथा ८५ ]
* ट्ठाणं णिक्खिविदव्वं ।
$ ३८. ट्ठाणमिदाणिं णिक्खिवियव्वं, पुव्वमपरूवियत्तादो त्ति भणिदं होइ ।
१७३
* एकैकनिक्षेप पूर्व-निक्षिप्त है और पूर्व प्ररूपित है ।
$ ३७. प्रकृत में एकैक शब्दसे क्रोधादिमें से एक-एक कषायका ग्रहण किया है अथवा लतासमान आदि स्थानोंमेंसे एक-एक विवक्षित स्थानका ग्रहण किया है । उनमें से यदि सर्वप्रथम क्रोधादिमें से एक-एक कषायका ग्रहण यहाँपर विवक्षित है तो एक-एक कषाय पूर्व - निक्षिप्त है और पूर्व-प्ररूपित है, इसलिये इस समय उनका निक्षेप और प्ररूपणा अधिकृत नहीं है, क्योंकि ग्रन्थ के आदिमें कषायोंके निक्षेपके समय क्रोधादि कषायोंका पृथक-पृथक नाम और स्थापना आदिके भेदसे बहुत विस्तार के साथ निक्षेप कर आये हैं तथा पेज्ज-दोस आदि अनुयोगद्वारोंमें उनका प्रबन्धरूपसे कथन कर आये हैं । और यदि लतासमान आदि स्थानों का पृथक-पृथक ग्रहण विवक्षित है तो भी एक-एक स्थान पूर्वनिक्षिप्त है और पूर्व - प्ररूपित ही है ।
शंका- वह कैसे ?
समाधान---लतासमान आदि के भेदसे भेदको प्राप्त हुए मानकषायका निक्षेप करते हुए सामान्य मानके निक्षेपसे ही वह गतार्थ है, क्योंकि सामान्यसे विशेष एकान्त से पृथक् नहीं उपलब्ध होता । इसी प्रकार नग, पृथिवी आदिकी अपेक्षा विशेषताको प्राप्त हुए क्रोधादिकका भी इस समय किया जानेवाला निक्षेप पूर्व में कहे गये सामान्य क्रोधादिके निक्षेपसे ही गतार्थ है, इसलिए पूर्व में कहा गया होनेसे एकैक निक्षेपको छोड़कर स्थानविषयक निक्षेपको करते हुए इस सूत्र को कहते हैं
* स्थान पदका निक्षेप करना चाहिए |
३८. इस समय स्थान पदका निक्षेप करना चाहिए, क्योंकि इसका पहले कथन नहीं किया है यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।