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गाथा ८३ ] चोदसगाहासुत्तस्स अत्थपरूवणा
१६७ विसेसियं होदूण गवकबंधसरूवेणावद्विदं वा कदमं ठाणं कदमिस्से गदीए होदि ? 'उवसंतं वा' एत्थाणुदयलक्खणो उवसमो विवक्खिओ, तेणाणुदयसरूवं होदणुवसंतभावेण द्विदं कदमं ठाणं कम्हि गदीए होइ ? 'उदिण्णं वा' एदेण वि सुत्तावयवेण उदयावत्थाविसेसिदं होदूण कं ठाणं कदमिस्से गदीए होदि ति पुच्छाणिदेसो कदो होदि । तदो एदं सव्वं पुच्छासुत्तमेव । एदिस्से पुच्छाए विसेसणिण्णयमुवरि चरिमगाहासुत्तसंबंधेण कस्सामो(२८) सण्णीसु असण्णीसु य पज्जत्ते वा तहा अपज्जत्ते ।
सम्मत्ते मिच्छत्ते य मिस्सगे चेय बोद्धव्वा ॥२॥
$ २७. एत्थ 'सण्णीसु असण्णीसु य' इच्चेदेण सुत्तावयवेण सण्णिमग्गणा पयदपरूवणाविसेसिदा गहिया । 'पज्जत्ते वा तहा अपज्जत्ते । एदेण वि सुत्तावयवेण काइंदियमग्गणाणं संगहो कायव्वो। 'सम्मत्ते मिच्छत्ते' एदेण वि गाहापच्छद्धेण सम्मत्तमग्गणा सूचिदा, तब्भेदाणं मुत्तकंठमिहोवएसादो। तदो एदेसु मग्गणाविसेसेसु कदमं ठाणं बंधोदयादिविसेसिदं होइ ति पुच्छाण संबंधो एत्थ वि कायव्यो । (३०) विरदीय अविरदीए विरदाविरदे तहा अणागारे ।
सागारे जोगम्हि य लेस्साए चेव बोद्धव्वा ॥८३॥ परिणामसे विशेषताको प्राप्त होकर नवक बन्धस्वरूपसे अवस्थित कौन स्थान किस गतिमें होता है ? 'इसी प्रकार 'उवसंतं वा' इस वचनसे यहाँपर अनुदय लक्षणरूप उपशम विवक्षित है, इसलिये अनुदयस्वरूप होकर उपशान्तभावसे स्थित कौन स्थान किस गतिमें होता है ? तथा इसी प्रकार 'उदिण्णं वा' सूत्रके इस वचन द्वारा भी उदय अवस्थासे विशेषताको प्राप्त होकर कौन स्थान किस गतिमें होता है इस प्रकार पृच्छानिर्देश किया है, इसलिये यह सब पृच्छासूत्र ही है । इस पृच्छाका विशेष निर्णय आगेके अन्तिम गाथासूत्रके सम्बधसे करेंगे
पूर्वोक्त बद्ध आदि विशेषताओंसे युक्त ये सोलह स्थान यथासम्भव संज्ञियोंमें, असंज्ञियोंमें, पर्याप्तमें, अपर्याप्तमें, सम्यक्त्त्वमें, मिथ्यात्वमें और मिश्र ( सम्यग्मिथ्यात्व ) में जानना चाहिए ।।८२॥
२७. इस गाथासूत्र में 'सण्णीसु य' इस सूत्र वचन द्वारा प्रकृत प्ररूपणासे विशेषताको प्राप्त हुई संज्ञी मार्गणा ग्रहण की गई है । 'पज्जत्ते वा तहा अपज्जत्ते' इस सूत्रवचन द्वारा भी काय और इन्द्रिय मार्गणाका संग्रह करना चाहिए । 'सम्मत्ते मिच्छत्ते' इत्यादि गाथाके उत्तरार्ध द्वारा भी सम्यक्त्व मार्गणा सूचित की गई है, उसके भेदोंका यहाँ पर मुक्तकण्ठ होकर उपदेश दिया गया है। इसलिये मार्गणाके इन भेदोंमें बन्ध और उदय आदिसे विशेषताको प्राप्त हुआ कौन स्थान होता है इस प्रकार पृच्छाओंका सम्बन्ध यहाँ पर भी
पूर्वोक्त बद्ध आदि विशेषताओंसे युक्त वे ही सोलह स्थान विरतिमें, अविरतिमें, विरताविरतमें, अनाकार उपयोगमें, साकार उपयोगमें, योगमें और लेश्यामें तथा गाथासूत्र में आये हुए 'चेव' पदसे अनुक्त शेष मार्गणाओंमें भी जानना चाहिए ।।८३॥
करना चाहिए।