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गाथा ७७] अट्ठमगाहासुत्तस्स अत्थपरूवणा
१६१ जुत्तं, दोसु वि ढाणेसु अप्पप्पणो आदिवग्गणपमाणेण दिवड्डगुणहाणिमेत्तेसु संतेसु तत्थ फंद्दयगुणगारस्स पयदविवज्जासणं पडि सामर्थ्याभावादो।
१९. संपहि जहा लदासमाणादो दारुअसमाणो अणंतगुणहीणो जादो, एवं दारुअसमाणसव्वपदेसपिंडादो अत्थिसमाणसव्वपदेसपिंडो अणंतगुणहीणो। तत्तो वि सेलसमोणसव्वपदेसपुंजो अणंतगुणहीणो त्ति एदस्सत्थविसेसस्स पदुप्पायणहूँ गाहापच्छद्धणिद्देसो, 'सेसा कमेण हीणा गुणेण णियमा अणंतेणे' ति वुत्ते सेसाणमणुभागहाणाणं जहाकमं पदेसग्गेणाणंतगुणहीणत्तसिद्धीए जहावुत्तेण गाएण णिव्वाहमुवलंभादो। (२४) णियमा लदासमादो अणुभागग्गेण वग्गणग्गेण ।
सेसा कमेण अहिया गुणेण णियमा अणंतेण ॥७७॥
$ २०. एदेण सुत्तेण लदासमाणाणुभागट्ठाणादो सेसट्टाणाणमणुभागस्स जहाकमणंतगुणत्तं परविदं । तं जहा–'णियमा' णिच्छएण 'लदासमादो लदासमाणसण्णिदमाणाणुभागट्ठाणादो सेसा दारुअसमाणादयो कमेण जहाकममहिया होति त्ति सुत्तसंबंधो कायव्यो । केण ते तत्तो अहिया त्ति पुच्छिदे 'अणुभागग्गेण वग्गणग्गेणे'
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का अवलम्बन लेकर प्रकृत विषयका विपर्यास करना युक्त नहीं है, क्योंकि दोनों ही स्थानोंमें अपनी-अपनी आदि वर्गणाके प्रमाणसे डेढ़ गुणहानि मात्र होनेपर वहाँ स्पर्धकरूप गुणकारमें प्रकृत विषयके विपर्यास करनेकी सामर्थ्य नहीं है ।
१९. अब जैसे लताके समान प्रदेशपिण्डसे दारुके समान प्रदेशपिण्ड अनन्तगुणा हीन है इसी प्रकार दारुके समान समस्त प्रदेशपिण्डसे अस्थिके समान समस्त प्रदेश पिण्ड अनन्तगुणा हीन है तथा उससे भी शैलके समान समस्त प्रदेशपिण्ड अनन्तगुणा हीन है। इस प्रकार इस अर्थविशेषके कथन करनेके लिये गाथाके उत्तरार्धका निर्देश किया है, क्योंकि 'सेसा कमेण हीणा गुणे, णियमा अणंतेण' ऐसा कहने पर शेष अनुभागस्थानोंके क्रमसे प्रदेशसमूहकी अपेक्षा अनन्तगुणे हीनपनेकी सिद्धि पूर्वोक्त न्यायके अनुसार निर्बाध बन जाती है।
लताके समान मानसे शेष स्थानीय मान अनुभागसमूहकी अपेक्षा और वर्गणासमूहकी अपेक्षा क्रमशः नियमसे अनन्तगुणित अधिक होते हैं ।।७७।।
२०. इस सूत्र द्वारा लताके समान अनुभागस्थानसे शेष स्थानोंका अनुभाग क्रमसे अनन्तगुणा कहा गया हैं। यथा-'णियमा' अर्थात् निश्चयसे 'लदासमादो' अर्थात् लताके समान संज्ञावाले मानके अनुभागस्थानसे 'सेसा' अर्थात् दारु आदि के समान अनुभागस्थान 'कमण' यथाक्रम अधिक होते हैं इस प्रकार सूत्रका अर्थके साथ सम्बन्ध करना चाहिए । किसकी अपेक्षा वे उससे अधिक होते हैं ऐसा पूछने पर 'अणुभागग्गेण' वग्गणग्गेण' यह
३. ता०प्रती अहिया
१. ता०प्रती सुत्ते इति पाठः। २. ता०प्रती णियमा इति पाठः । इति पाठः । ४. ता० प्रतौ समाणादो इति पाठः।
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