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१५४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[चउट्ठाणं ८ समुट्टिदरेहासमाणो कोहो त्ति घेत्तव्वो। एदमप्पयरकालावट्ठाणं पेक्खियूण भणिदं । तं जहा—णदीपुलिणादिसु वालुअरासिमझे पुरिसप्पयोगेणण्णदरेण वा केणचि कारणजादेण समुट्ठिदा रेहा जहा पवणाभिघादादिणा कारणंतरेण लहुमेव पूणो' समभावं गच्छदि एवं कोहपरिणामो वि मंदुत्थाणो गुरुवएसपवणपेल्लिदो संतो सव्वलहुमेवोवसमं गच्छमाणो वालुगराइसरिसो त्ति भण्णदे।
६९. एवमुदयराइसरिसो वि कोहो अणुगंतव्यो । णवरि एदम्हादो वि मंदयराणुभागो थोवयरकालावट्ठाणो च सो गहेयव्यो, पाणीयमज्झसमुद्विदाए रेहाए पयोगंतरेण विणा तक्खणमेव विणासदसणादो । एत्थ उहयत्थ वि राइसद्दो रेहापजायवाचओ घेत्तव्यो । एवं कोहस्स चउण्हं हाणाणमवट्ठाणकालस्स थोवबहुत्तमस्सियूण णिदरिसणोवणयणं कदं । एवं माणस्स वि चउण्हं ठाणाणं गाहापच्छद्धाणुसारेणाणुगमो कायव्वो । णवरि 'सेलघण' एवं भणिदे सिलाथंभसमाणो माणो त्ति घेत्तव्यो, समाणसहस्स पादेकमभिसंबंधावलंबणादो। अतिस्तब्धभावापेक्षया चैतत् प्रतिपादितम् । एवमस्थि-दारु-लतासमानानामप्यर्थो वाच्यः । सर्वत्र च स्तब्धतालक्षणस्य भावस्य प्रकर्षाप्रकर्षभावापेक्षया निदर्शनोपनयः कृत इति प्रतिपत्तव्यम् ।।
राशिके मध्य उत्पन्न हुई रेखाके समान क्रोध ऐसा ग्रहण करना चाहिए । यह अल्पतर काल तक रहता है इसे देखकर कहा है। यथा-नदीके पुलिन आदिमें वालुकाराशिके मध्य पुरुषके प्रयोगसे या अन्य किसी कारणसे उत्पन्न हुई रेखा जैसे हवाके अभिघात आदि दूसरे कारणद्वारा शीघ्र ही पुनः समान हो जाती है अर्थात् रेखा मिट जाती है। इसीप्रकार क्रोधपरिणाम भी मन्दरूपसे उत्पन्न होकर गुरुके उपदेशरूपी पवनसे प्रेरित होता हुआ अतिशीघ्र उपशमको प्राप्त हो जाता है । वह क्रोध वालुकाराजिके समान कहा जाता है।
६९. इसी प्रकार उदकराजिके सदृश भी क्रोध जान लेना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इससे भी मन्दतर अनुभागवाला और स्तोकतर काल तक रहनेवाला वह जानना चाहिए, क्योंकि पानीके भीतर उत्पन्न हुई रेखाका विना दूसरे उपायके उसी समय ही विनाश देखा जाता है । यहाँ उभयत्र 'राजि' शब्द रेखाका पर्यायवाची लेना चाहिए। इस प्रकार क्रोधके चारों स्थानोंके अवस्थानकालके अल्पबहुत्वका आश्रयकर उदाहरणका उपनयन किया। इसी प्रकार मानके भी चारों स्थानोंका गाथाके उत्तरार्धके अनुसार अनुगम करना चाहिए । इतनी विशेषता है कि 'सेलघण' ऐसा कहनेपर शिला स्तम्भके समान मान लेना चाहिए, क्योंकि समान शब्दका प्रत्येकके साथ सम्बन्ध करनेका अवलम्बन लिया है। अतिस्तब्धभावकी अपेक्षा यह उदाहरण कहा गया है। इसी प्रकार अस्थि, दारु और लताके समान मानकषायका भी अर्थ कहना चाहिए । सर्वत्र स्तब्धतालक्षणभावके प्रकर्ष-अप्रकर्षपनेकी अपेक्षा उदाहरणोंका उपनय किया है ऐसा जानना चाहिए ।
१. ता०प्रतो पुणो व इति पाठः ।