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१४६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ उवजोगो ७ असंखेजदिभागपडिभागिओ आहो पलिदोवमस्स असंखेजदिभागपडिभागिओ, किंवा अण्णपडिभागिओ त्ति संपहारणाए तव्विसयणिण्णयजणणट्ठमेदं सुत्तमोइण्णं ।
___$ ३१०. तं जहा–एत्थ वे उवएसा–पवाइजंतओ अपवाइजंतओ चेदि । तत्थ ताव एक्केण अपवाइजंतएण उवदेसेण पलिदोवमस्स असंखेजदिभागपडिभागिओ एसो विसेसो घेत्तव्यो, समयं पडि माणोवजुत्ताणं पवेसणरासिं जहावुत्तेण पलिदोवमस्स असंखेजदिभागपडिभागेण खंडेयूणेयखंडमेत्तेण कोहोवजुत्ताणं पवेसणस्स तत्तो विसेसाहियत्तभुवगमादो संचयस्स वि एसो चेव पडिभागो एदम्मि उवएसे वत्तव्यो, संचयस्स सव्वत्थ पवेसाणुसारित्तदंसणादो अद्धा विसेसस्स एदम्मि पक्खे अविवक्खियत्तादो । अधवा संचयस्स एसो पडिभागो ण जोजेयव्यो, अद्धाविसेसस्सेव तत्थ पहाणत्तोवलंभादो।
* पवाइज्जंतेण उवदेसेण आवलियाए असंखेजदिभागो।
$३११. विसेसो त्ति पुव्वसुत्तादो अणुवट्टदे, पडिभागो त्ति च, तेणेवमहिसंबंधो कायव्यो—माणोवजुत्ताणं पवेसणरासिमावलियाए असंखेजदिमागपडिभागेण भागं घेत्तूण तत्थ भागलद्धमत्तेण कोहोवजुत्ताणं पवेसणरासी तत्तो विसेसाहिओ त्ति एसो चेव उवएसो एत्थ पहाणभावेणावलंबेयव्यो, पव्वाइजमाणत्तादो।
प्रतिभागस्वरूप है या पल्योपमके असंख्यातवें भागके प्रतिभागस्वरूप है या क्या अन्य प्रतिभागस्वरूप है ऐसी आशंका होनेपर उस विषयका निर्णय करनेके लिए यह सूत्र आया है।
$ ३१०. यथा-इस विषयमें दो उपदेश पाये जाते हैं—प्रवाह्यमान उपदेश और अप्रवाह्यमान उपदेश । उनमेंसे सर्वप्रथम एक अप्रवाह्यमान उपदेशके अनुसार पल्योपमके असंख्यातवें भागके प्रतिभागस्वरूप इस विशेषको ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि प्रत्येक समय में मानकषायमें उपयुक्त हुए जीवोंकी प्रवेशराशिको पूर्वोक्त पल्योपमके असंख्यातव भागरूप प्रतिभागसे भाजितकर जो एक भाग प्राप्त हो उतना क्रोधकषायमें उपयुक्त हुए जीवोंका प्रवेश मानकषायमें प्रवेश करनेवाली जीवराशिसे विशेष अधिक स्वीकार किया गया है तथा संचयका भी यही प्रतिभाग इस उपदेशके अनुसार कहना चाहिए, क्योंकि सर्वत्र संचय प्रवेशके अनुसार देखा जाता है तथा इस पक्षमें कालविशेषकी विवक्षा नहीं की गई है। अथवा संचयका यह प्रतिभाग नहीं लेना चाहिए, क्योंकि कालविशेषकी ही वहाँ प्रधानता पाई जाती है।
* प्रवाह्यमान उपदेशके अनुसार विशेष आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है।
$ ३११. विशेष इस पदकी पूर्व सूत्रसे अनुवृत्ति होती है और प्रतिभाग पदकी भी, इसलिए ऐसा सम्बन्ध करना चाहिए कि मानकषायमें प्रवेश करनेवाली राशिको आवलिके असंख्यातवें भागरूप प्रतिभागसे भाजितकर वहाँ जो भाग लब्ध आवे उतनी क्रोधकषायमें
ए जीवोंकी प्रवेशराशि उससे विशेष अधिक होती है इस प्रकार यही उपदेश यहाँपर प्रधानभावसे लेना चाहिए, क्योंकि यह प्रवाह्यमान उपदेश है।।