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गाथा ६९]
सत्तमगाहासुत्तस्स अत्थपरूवणां $३१२. संपहि एदेण पवेसणप्पाबहुएण साहिदसंचयप्पाबहुअमोघेण तिरक्खमणुसगईसु च एवमणुगंतव्वं-सव्वत्थोवा माणोवजुत्ता। कोहोवजुत्ता विसेसाहिया । मायोवजुत्ता विसेसाहिया । लोभोवजुत्ता विसेसाहिया । सव्वत्थ विसेसपमाणमणंतरपरूविदत्तादो सुगमं । एवं विदियादिया सेढी समत्ता ।।
३१३. संपहि एदेण देसामसयसुत्तेण सूचिदपढम-चरिमादियाणं पि साहणं कादूण तदो संचयप्पावहुअं कायव्वं । तं जहा-देवगदीए कोहोवजुत्ता थोवा । माणोवजुत्ता संखेजगुणा । मायोवजुत्ता संखेजगुणा । लोभोवजुत्ता संखेजगुणा, तदद्धाणं तप्पवेसणस्स च तहाभावेणावट्ठाणादो। एसा पढमादिया सेढी। एवं चरमादिया वि णेदव्वा । णवरि णिरयगइसंबंधेण देवगइविवजासेण तदुच्चारणं कायव्वं । जइ वि एदं जीवविसयमप्पाबहुअं पुव्वमट्ठसु अणिओगद्दारेसु परूविञ्जमाणेसु विहासिदं चेव तो वि पवेसणसंबंधेण विसेसपमाणावहारणमुहेण च विसेसयूणेत्थ परूवणादो ण पुणरुत्तदोसावयारो । एवमप्पाबहुए समत्ते सत्तमीए सुत्तगाहाए पच्छद्धस्स अत्थविहासा समत्ता । संपहि एवमेदेसु सत्तसु गाहासुत्तेसु विहासिय समत्तेसु एत्थेवुवजोगाणिओगद्दारपरिसमत्ती जायदि ति जाणावणमुत्तरमुवसंहारवक्कं
एवमुवजोगो ति समत्तमणिओगद्दारं । ३१२. अब इस प्रवेशसम्बन्धी अल्पबहुत्वसे साधा गया संचयसम्बन्धी अल्पबहुत्व ओघसे तिर्यश्चगति और मनुष्यगतिमें इस प्रकार जानना चाहिए-मानकषायमें उपयुक्त हुए जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे क्रोधकषायमें उपयुक्त हुए जीव विशेष अधिक हैं। उनसे मायाकषायमें उपयुक्त हुए जीव विशेष अधिक है तथा उनसे लोभकषायमें उपयुक्त हुए जीव विशेष अधिक हैं । सर्वत्र विशेषका प्रमाण अनन्तर कहा गया होनेसे सुगम है। इस प्रकार द्वितीयादिका श्रेणि समाप्त हुई।
६३१३. अब इस देशामर्षक सूत्रसे सूचित हुई प्रथमादिका और चरमादिका श्रेणियोंका भी साधनकर उसके बाद संचयसम्बन्धी अल्पबहुत्व कर लेना चाहिए । यथा-देवगतिमें क्रोधकषायमें उपयुक्त हए जीव सबसे थोड़े हैं, उनसे मानकषायमें उपयुक्त हुए जीव संख्यातगुणे हैं, उनसे मायाकषायमें उपयुक्त हुए जीव संख्यातगुणे हैं तथा उनसे लोभकषायमें उपयुक्त हुए जीव संख्यातगुणे हैं, क्योंकि उनका काल और उनका प्रत्येक समयमें प्रवेश उसी प्रकार देखा जाता है। यह प्रथमादिका श्रेणि है। इसी प्रकार चरमादिका श्रेणि भी जाननी चाहिए। इतनी विशेषता है नरकगतिके सम्बन्धसे उसका कथन देवगतिके विपरीतरूपसे करना चाहिए । यद्यपि यह जीवविषयक अल्पबहुत्व पहले आठ अनुयोगद्वारोंके कथनके समय कह आये हैं तो भी प्रवेशके सम्बन्धसे विशेष प्रमाणके अवधारणद्वारा विशेषरूपसे यहाँपर कथन करनेसे पुनरुक्त दोषका अवतार नहीं होता है। इस प्रकार अल्पबहुत्वके समाप्त होनेपर सातवीं सूत्रगाथाके उत्तरार्धके अर्थका विशेष व्याख्यान समाप्त हआ। अब इस प्रकार इन सात गाथासूत्रोंका व्याख्यान समाप्त होनेपर यहींपर उपयोग अनुयोगद्वारकी समाप्ति हो जाती है इस बातका ज्ञान करानेके लिये आगेका उपसंहार वाक्य है
इस प्रकार उपयोगसंज्ञक सातवाँ अनुयोगद्वार समाप्त हुआ।