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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ उवजोगो ७ थोवो त्ति भणिदं होदि । कथं पुनः प्रवेशनशब्देन प्रवेशकालो गृहीतुं शक्यत इति नाशंकनीयम्, प्रविशन्त्यस्मिन् काले इति प्रवेशनशब्दस्य व्युत्पादनात् ।
* कोहोवजुत्ताणं पवेसणगं विसेसाहियं ।
$३०७. केत्तियमेत्तो विसेसो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तो। एवं मायालोभोवजुत्ताणं एत्तो जहाकमेण पवेसणकालाणं विसेसाहियत्तमणुगंतव्वं, सुत्तस्सेदस्स देसामासयभावेण पयट्टत्तादो। जदो एवं पवेसणकालाणं माणादिपरिवाडीए विसेसाहियभावो तिरिक्ख-मणुसेसु तदो तकालसंचिदमाणादिकसायोवजुत्ताणं पि तहाभावसिद्धि ति परिप्फुडमेवेदं विदियादियाए साहणमिदि सिद्धं, पवेसणकालाणुसारेण संचयसिद्धीए णाइयत्तादो । एदम्मि पुण पक्खे अवलंबिज्जमाणे 'एसो विसेसो एक्केण उवदेसेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागपडिभागो' त्ति उवरिमाणंतरसुत्तं ण घडदे, पवेसणकालम्मि पलिदोवमासंखेज्जदिभागपडिभागियस्स विसेसस्स सव्वप्पणा संभवाणुवलंभादो। तदो णेदं पवेसणकालाणमप्पाबहुअपरूवयं सुत्तं किंतु कसायोवजोगद्धासु समयं पडि ढुकमाणजीवाणं पवेसणस्स थोवबहुत्तपरिक्खणट्टमेदं सुत्तमोइण्णं इदि घेत्तव्वं ।
३०८. तं जहा-माणोवजुत्ताणं षवेसणयं थोवं, कोहोवजुत्ताणं पवेसणयं पदोंको देखते हुए सबसे थोड़ा है।
शंका-प्रवेशन शब्दसे प्रवेशकालका ग्रहण कैसे शक्य है ?
समाधान-ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि जिस कालमें जीव प्रवेश करते हैं इस प्रकार प्रवेशन शब्द प्रवेशकालके अर्थमें व्युत्पादित किया गया है।
* उससे क्रोधकषायमें उपयुक्त हुए जीवोंका प्रवेशकाल विशेष अधिक है।
$३०७. विशेषका प्रमाण कितना है ? आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार आगे मायाकषाय और लोभकषायमें उपयुक्त हुए जीवोंका प्रवेशकाल विशेष अधिक जान लेना चाहिए, क्योंकि यह सूत्र देशामर्षकभावसे प्रवृत्त हुआ है। यतः इस प्रकार मानकषायसे लेकर परिपाटी क्रमसे तिर्यश्चों और मनुष्यों में प्रवेशकालका विशेष अधिकपना है, इसलिये उस कालमें संचित हुए मानादि कषायोंमें उपयुक्त हुए जीवोंके भी विशेष अधिकपनेकी सिद्धि स्पष्टरूपसे बन जाती है यह 'विदियादियाए साहणं' इस सूत्रसे स्पष्टरूपसे सिद्ध है, क्योंकि प्रवेशकालके अनुसार संचयकी सिद्धि न्यायप्राप्त है। परन्तु इस पक्षके अवलम्बन करनेपर 'यह विशेष एक उपदेशके अनुसार पल्योपमके असंख्यातवें भागके प्रतिभागस्वरूप है' इस प्रकार यह उपरिम अनन्तर सूत्र नहीं बनता है, क्योंकि प्रवेशकालमें पल्योपमके असंख्यातवें भागके प्रतिभागस्वरूप विशेष सब प्रकारसे उत्पत्ति नहीं बन सकती। इसलिए यह प्रवेशकालोंके अल्पबहुत्वका कथन करनेवाला सूत्र नहीं है, किन्तु कषायोंके उपयोगकालोंके भीतर प्रत्येक समय में प्राप्त होनेवाले जीवोंके प्रवेशके अल्पबहुत्वकी रक्षा करनेके लिये यह सूत्र आया है ऐसा ग्रहण करना चाहिए।
६३०८. यथा-मानकषायमें उपयुक्त हुए जीवोंका प्रवेश सबसे थोड़ा है। उससे