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गाथा ६९] सत्तमगाहासुत्तस्स अत्थपरूवणा
१४३ जुत्ताणं सव्वत्थोवभावो सा चरिमादिया णाम। चरिमो कसायो आदी जिस्से अप्पाबहुअसेढीए सा चरिमादिया त्ति समासावलंबणादो। सा वुण जेरइएसु होइ, तत्थ लोभोवजुत्ताणं सव्वत्थोवभावे पवुत्तिदसणादो। एवमेदाओ तिण्णि चेव अप्पाबहुअसेढीओ पयदविसये संभवंति, पयारंतरस्स तत्थाणुवलंभादो। एत्थ ताव विदियाए सेढीए साहणट्टमेसा संदिट्ठी
०००००००००००० माणोवजुत्तद्धा । ०००००००००००००००० कोहोवजुत्तद्धा । ०००००००००००००००००००० मायोवजुत्तद्धा ।
००००००००००००००००० लोभोवजुत्तद्धा । संपहि एदीए संदिट्ठीए पयदत्थसाहणमुवरिमं चुण्णिसुत्तपबंधमणुसरामो* विदियादियाए साहणं ।
$३०५. तत्थ ताव विदियादियाए सेढीए जीवप्पाबहुअपरूवणस्स साहणं तप्पवेसणकालपडिबद्धमप्पाबहुअं कस्सामो त्ति वुत्तं होइ ।
* माणोवजुत्ताणं पवेसणयं थोवं ।
६३०६. तिरिक्ख-मणुस्सेसु माणोवजुत्ताणं पवेसणकालो उवरिमपदविवक्खिओ चरमादिका परिपाटी कहलाती है। चरम कषाय है आदिमें जिस अल्पबहुत्वश्रेणिके वह चरमादिका इस प्रकार प्रकृतमें समासका अवलम्बन लिया है। परन्तु वह नारकियोंमें होती है, क्योंकि उनमें लोभसे उपयुक्त हुए जीवोंकी सबसे स्तोकरूपसे प्रवृत्ति देखी जाती है। इस प्रकार प्रकृत विषयमें ये तीन ही अल्पबहुत्वश्रेणियाँ सम्भव हैं, क्योंकि प्रकृतमें इनके सिवाय दूसरा प्रकार नहीं उपलब्ध होता है। यहाँपर सर्वप्रथम द्वितीयादिका श्रेणिके साधन करनेके लिये यह संदृष्टि है
०००००००००००० मानोपयोगकाल । ०००००००००००००००० क्रोधोपयोगकाल । ०००००००००००००००००००० मायोपयोगकाल । ०००००००००००००००००००००००० लोभोपयोगकाल । अब इस संदृष्टिद्वारा प्रकृत अर्थका साधन करनेके लिये आगेके सूत्रप्रबन्धका अनुसरण * अब द्वितीयादिका श्रेणिकी अपेक्षा साधन करते हैं।
६३०५. वहाँ सर्वप्रथम द्वितीयादिका श्रेणिको अपेक्षा जीव अल्पबहुत्वके कथनका साधन करेंगे अर्थात् जीवोंके प्रवेशकालसे सम्बन्ध रखनेवाले अल्पबहुत्वको कहेंगे यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
* मानकषायमें उपयुक्त हुए जीवोंका प्रवेशकाल सबसे थोड़ा है। $ ३०६. तिर्यञ्चों और मनुष्योंमें मानकषायमें उपयुक्त हुए जीवोंका प्रवेशकाल उपरिम
करते है इस संदृष्टिद्वारा प्रकृती