________________
१३६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ उवजोगो ७ जादाओ । किं कारणं ? संखेजरूवब्भहियजहण्णपरित्तासंखेज्जमेत्तरूवाणमेत्थ गुणगारसरूवेण पउत्तिदसणादो । एवमेदीए दिसाए जहण्णपरित्तासंखेज्जच्छेदणयाणि दुरूवूणतिरूवूणादिकमेण परिहाविय हेट्ठिमणाणागुणहाणिसलागाणं पमाणाणुगमो समयाविरोहेण कायव्यो जाव तप्पाओग्गसंखेज्जरूवमेत्ताओ जादाओ त्ति । तदो हेडिमणाणागणहाणिसलागाओ संखेज्जाओ होदूण उवरिमणाणागुणहाणिसलागाहिंतो असंखेज्जगणहीणाओ त्ति सिद्धं ।
$ २९२. एवं ताव जवमज्झच्छेदणयाणमसंखेज्जदिभागमेत्ताओ हेट्ठिमणाणागुणहाणिसलागाओ तेसिमसंखेज्जदिभागमेत्ताओ च उवरिमणाणागुणहाणिसलागाओ त्ति एदमत्थं परूविय संपहि एवंविहणाणागुणहाणिसलागाओ धरेदूण जहण्णुक्कस्सट्ठाणजीवपमाणणिण्णयं कस्सामो । तं जहा-जवमज्झादो हेट्ठिमणाणागुणहाणिसलागाओ विरलिय विगं करिय अण्णोण्णब्भत्थे कदे जहण्णपरित्तासंखेज्जस्स अद्धमुप्पज्जइ । पुणो एदेणण्णोण्णभत्थरासिणा जवमज्झजीवे ओवट्टिदेसुरूवूणुकस्ससंखेज्जमेत्तजहण्णपरित्तासंखेज्जयाणि अण्णोण्णब्भत्थाणि कादण दुगुणमेत्तं लद्धपमाणं होदि । एदं चेव जहण्णट्ठाणजीवपमाणमिदि घेत्तव्यं ।। ___$२९३. संपहि उक्कस्सट्ठाणजीवपमाणे आणिज्जमाणे तत्थ ता वपुव्वुत्तविरलणाए दोस्वधरिदछेदणएहिं परिहीणजवमज्झच्छेदणयमेत्ताओ उवरिमणाणागुणहाणिसलागाओ उपरिम नाना गुणहानिशलाकाएं निःशंसय असंख्यातगुणी हो जाती हैं, क्योंकि संख्यात अंक अधिक जघन्य परीतासंख्यातप्रमाण अंकोंकी यहाँपर गुणकाररूपसे प्रवृत्ति देखी जाती है। इस प्रकार इस पद्धतिसे जघन्य परीतासंख्यातके अर्धच्छेदोंको दो अंक कम, तीन अंक कम आदिके क्रमसे घटाकर अधस्तन नाना गुणहानिशलाकाओंके प्रमाणका अनुगम तत्प्रायोग्य संख्यातप्रमाण संख्याके प्राप्त होने तक आगमानुसार करना चाहिए । अतः अधस्तन नाना गुणहानिशलाकाएँ संख्यात होकर वे उपरिम नाना गुणहानिशलाकाओंसे असंख्यातगुणी हीन होती हैं यह सिद्ध हुआ।
६२९२. इस प्रकार सर्वप्रथम यवमध्यके अर्धच्छेदोंके असंख्यातवें भागप्रमाण अधस्तन नाना गुणहानिशलाकाएँ और उन्हीं अर्धच्छेदोंके असंख्यात बहुभागप्रमाण उपरिम नाना गुणहानिशलाकाएँ होती हैं इस प्रकार इस अर्थका कथनकर अब इस प्रकारसे नाना गुणहानिशलाकाओंको ग्रहणकर जघन्य और उत्कृष्ट स्थानके जीवोंके प्रमाणका निर्णय करते हैं। यथा-यवमध्यसे अधस्तन नाना गुणहानिशलाकाओंका विरलनकर और विरलित राशिके प्रत्येक एकको दूनाकर परस्पर गुणा करनेपर जघन्य परीतासंख्यातका अर्धभाग उत्पन्न होता है । पुनः इस अन्योन्य अभ्यस्त राशिद्वारा यवमध्यके जीवोंके भाजित करनेपर जो लब्ध आता है वह एक कम उत्कृष्ट संख्यातप्रमाण जघन्य परीतासंख्यातको परस्पर गणितकर जो लब्ध आवे उससे दूना होता है । यही जघन्य स्थानके जीवोंका प्रमाण है ऐसा ग्रहण करना चाहिए।
२९३. अब उत्कृष्ट स्थानके जीवोंके प्रमाणको लानेपर वहाँ सर्व प्रथम पूर्वोक्त विरलनके दो अंकोंके प्रति प्राप्त अर्धच्छेदोंसे हीन यवमध्यके अर्धच्छेदप्रमाण उपरिम नाना