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गाथा ६९]
सत्तमगाहासुत्तस्स अत्थपरूवणा हेट्ठिमोवरिमणाणागुणहाणिसलागाणमियत्तावहारणटुं सुत्तमुत्तरमोइण्णं
* जवमझजीवाणंजत्तियाणि अद्धच्छेदणाणि तेसिमसंखेजदिभागो हेट्ठा जवमझस्स गुणहाणिहाणंतराणि । तेसिमसंखेनभागमेत्ताणि उवरि जवमज्झस्स गुणहाणिहाणंतराणि ।।
२९०. एदेण सुत्तेण हेडिमणाणागुणहाणिसलागाहिंतो उवरिमणाणागुणहाणिसलागाणमसंखेजगुणत्तं सूचिदं । संपहि एत्थ जवमज्झच्छेदणएसु अणवगएसु तेहिंतो जवमज्झादो हेट्ठिमोवरिमणाणागुणहाणिसलागाणं पमाणावहारणं कादं ण सक्किन्जइ ति जवमज्झच्छेदणयाणमेव पमाणणिण्णयं ताव कस्सामो । तं जहाजवमज्झजीवपमाणमुक्कस्सेणावलियाए असंखेजदिभागो त्ति सुत्ते णिहिटुं, सो वुण आवलियाए असंखेजदिभागो जइ वि जिणदिवभावेण घेत्तव्यो, तो वि जहण्णपरित्तासंखेजेणावलियाए ओवट्टिदाए तत्थ भागलद्धमत्ता जवमझजीवा होति त्ति सव्वुक्कस्समावलियाए असंखेजदिमागं घेत्तूण तच्छेदणएहिंतो जवमज्झहेडिमोवरिमणाणागुणहाणिसलागाणं पमाणसाहणमेवमणुगंतव्वं । तं कथं ? जहण्णपरित्तासंखेजयं विरलेयूणावलियाए समखंडं कादूण दिण्णाए रूवं पडि जहण्णपरित्तासंखेजपमाणं पावइ । अधस्तन और उपरिम नाना गुणहानिशलाकाओंके प्रमाणको निश्चित करनेके लिये आगेका ____ * यवमध्यवर्ती जीवोंके जितने अर्धच्छेद होते हैं उनके असंख्यातवें भागप्रमाण यवमध्यके अधस्तन ( पूर्ववर्ती ) गुणहानिस्थानान्तर होते हैं तथा उनके ( अर्धच्छेदोंके) असंख्यात बहुभागप्रमाण यवमध्यके उपरितन गुणहानिस्थानान्तर होते हैं।
$ २९०. इस सूत्रद्वारा अधस्तन गुणहानिशलाकाओंसे उपरिम नाना गुणहानिशलाकाएँ असंख्यातगुणी सूचित की गई हैं। अब यहाँपर यवमध्यके अर्धच्छेदोंके अवगत न होनेपर उनसे यवमध्यसे अधस्तन और उपरिम नाना गुणहानिशलाकाओंका प्रमाण निश्चित करना शक्य नहीं है, इसलिए यवमध्यके अर्धच्छेदोंके ही प्रमाणका निर्णय सर्वप्रथम करेंगे । यथा-यवमध्यके जीवोंका प्रमाण उत्कृष्टरूपसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है इस प्रकार सूत्रमें निर्देश किया है। परन्तु उस आवलिके असंख्यातवें भागको यद्यपि जैसा जिनदेवने देखा हो वैसा लेना चाहिए तो भी जघन्य परीतासंख्यातसे आवलिके भाजित करनेपर वहाँ जो भाग लब्ध आवे उतने यवमध्यके जीव होते हैं, इसलिए आवलिके सबसे उत्कृष्ट असंख्यातवें भागको ग्रहणकर उनके अर्धच्छेदोंके द्वारा यवमध्यके अधस्तन और उपरितन गुणहानिशलाकाओंके प्रमाणकी सिद्धि होती है ऐसा जान लेना चाहिए।
शंका-वह कैसे ?
समाधान-जघन्य परीतासंख्यातका विरलनकर उस विरलित राशिपर आवलिके असंख्यातवें भागको समान खण्ड करके देयरूपसे देनेपर प्रत्येक एक विरलनके प्रति जघन्य परीतासंख्यातका प्रमाण प्राप्त होता है।
सूत्र आया है