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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ उवजोगो ७ पावंति । पुणो एदेसु वड्डाविजमाणेसु पढमदुगुणवड्डिअद्धाणम्मि एगेगजीववड्डिविसयस्स चउब्भागमेत्तद्धाणं गंतूणेगो जीवो वड्डदि त्ति वत्तव्वं । एवमुवरि वि जाणियूण भण्णमाणे अणंतरहेट्ठिमगुणहाणिम्हि वड्डिदेगजीवद्धाणादो उवरिमाणंतरगुणहाणीए वड्डाविजमाणेगजीवद्धाणमद्धद्धं होदूण गच्छइ जाव तप्पाओग्गपमाणाओ दुगुणवड्डीओ उवरि गंतूण जवमज्झट्ठाणं समुप्पण्णमिदि। _____$२८६. पुणो इमंजवमन्झट्ठाणजीवपमाणं घेत्तूण पुम्विन्लमवट्टिदविरलणं दुगुणिय विरलेयूण समखंडं करिय दिपणे विरलणरूवं पडि जवमज्झादो हेडिमाणंतरगुणहाणिम्मि एगेगरूवं पडि संपत्तजीवपमाणं होदूण पावइ । पुणो एत्थेगरूवधरिदमणंतरहेट्ठिमगुणहाणीए वड्डाविदविहाणेणासंखेजलोगमेत्तद्धाणं गंतूणेगेगजीवहाणिकमेण परिहायदि। पुणो वि एवं चेव परिहाणिं कादूण णेदव्वं जाव संपहियविरलणाए अद्धमेत्तरूवधरिदेसु सव्वेसु जहाकम परिहीणेसु जवमज्झादो उवरि पढमं दुगुणहाणिट्ठाणमुप्पणं ति । एवमेदेण विहाणेण णेदव्वं जाव तप्पाओग्गेसु गुणहाणिट्ठाणेसु गदेसु जहण्णट्ठाणजीवपमाणमवद्विदं ति । णवरि हेडिमगुणहाणीए एगजीवपरिहाणिअद्धाणादो उवरिमगुणहाणीए एगजीवपरिहीणद्धाणं दुगुण-दुगुणकमेण सव्वत्थ गच्छदि त्ति वत्तव्वं ।
२८७. एत्तो इमं जहण्णट्ठाणजीवपमाणं पुव्विल्लमवविदभागहारं विरलिय द्विगुणवृद्धिसम्बन्धी आयाममेंसे एक-एक जीवको वृद्धिसम्बन्धी आयामका चौथा भागमात्र आयाम जाकर एक जीव बढ़ता है ऐसा कहना चाहिए । इसीप्रकार आगे भी जानकर कथन करनेपर अनन्तर अधस्तन गुणहानिमें वृद्धिको प्राप्त हुए एक जीवसम्बन्धी आयामसे, तत्प्रायोग्य प्रमाणवाली द्विगुणवृद्धियाँ ऊपर जाकर यवमध्यस्थानके उत्पन्न होने तक, उपरिम अनन्तर गुणहानिमें वृद्धिको प्राप्त होनेवाले एक जीवसम्बन्धी आयामसे आधा-आधा होकर प्राप्त होता है।
$ २८६. पुनः यवमध्यस्थानके जीवोंके इस प्रमाणको ग्रहणकर पिछले अवस्थित विरलनके दूनेको विरलितकर और उसपर समान खण्डकर देयरूपसे देनेपर प्रत्येक विरलन अंकके प्रति यवमध्यसे अधस्तन ( पूर्वकी ) अनन्तर गुणहानिमें एक-एक अंकके प्रति प्राप्त जीवोंका जितना प्रमाण है उतना होकर प्राप्त होता है । पुनः यहाँ एक अंकके प्रति प्राप्त जीवोंका प्रमाण अनन्तर अधस्तन गुणहानिमें जिस विधिसे जीवोंका प्रमाण बढ़ाया गया उसके अनुसार असंख्यात लोकप्रमाण स्थान जाकर एक-एक जीवकी हानिके क्रमसे घटता जाता है। फिर भी इसीप्रकार तबतक हानि करते हुए ले जाना चाहिए जबतक साम्प्रतिक विरलनके अंकोंपर प्राप्त अर्धभागप्रमाण सब जीवोंके क्रमसे कम होनेपर यवमध्यके ऊपर प्रथम द्विगुणहानिस्थान उत्पन्न होता है । इस प्रकार इस विधिसे तत्प्रायोग्य गुणहानिस्थानोंके जानेपर जघन्य स्थानके जीदोंके प्रमाणके अवस्थित होने तक ले जाना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अधस्तन गुणहानिमें एक जीवके परिहानिसम्बन्धी अध्वानसे उपरिम गुणहानिमें एक जीवसम्बन्धी परिहानिका अध्वान सर्वत्र द्विगुण-द्विगुण क्रमसे जाता है ऐसा कहना चाहिए।
$ २८७. आगे जघन्य स्थानके जीवोंके इस प्रमाणको पहलेके अवस्थित भागहारका