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गाथा ६९]
सत्तमगाहासुत्तस्स अत्थपरूवणा असंखेज्जेसु वा त्ति एदस्स णिण्णयकरणट्ठमुवरिमसुत्तमोइण्णं
* जत्तिया एकम्हि हाणे उक्कस्सेण जीवा तत्तिया चेव अण्णम्हि हाणे । एवमसंखेजलोगट्ठाणाणि। एदेसु असंखेज्जेसु लोगेसु हाणेसु जवमझं।
२७५. सुगममेदं, उक्कस्सेणावलियाए असंखेजदिभागमेत्तेसु जीवेसु एकम्मि ठाणे वड्डिदेसु तत्तो प्पहुडि असंखेजलोगमेत्तेसु कसायुदयट्ठाणेसु तत्तियमेत्ता चेव जीवा होदूण तेसु हाणेसु जवमज्झसमुप्पत्ती होदि त्ति णिण्णयकरणफलत्तादो। संपहि जवमज्झादो उवरिमेसु हाणेसु जीवाणमवट्ठाणकमप्पदंसणझुमुवरिमं पबंधमणुसरामो
* तदो अण्णं हाणमेक्केण जीवेण हीणं । 5 २७६. तदो जवमज्झादो अण्णं द्वाणमणंतरोवरिममेक्केण जीवेण होणं होदि । * एवमसंखेजलोगहाणाणि तुल्लजीवाणि ।
$ २७७. एदेणाणंतरणिद्दिद्वेण द्वाणेण समाणजीवाणि असंखेजलोगमेत्ताणि ट्ठाणाणि णिरंतरमत्थि त्ति वुत्तं होइ ।
* एवं सेसेसु वि ठाणेसु जीवा णेदव्वा ।
होता हुआ क्या एक ही स्थानमें उत्पन्न होता है या संख्यात या असंख्यात स्थानोंमें उत्पन्न होता है इस प्रकार इस बातका निर्णय करनेके लिये आगेका सूत्र आया है
* जितने एक स्थानमें उत्कृष्टरूपसे जीव हैं उतने ही अन्य स्थानमें पाये जाते हैं । इस प्रकार असंख्यात लोकप्रमाण स्थानोंमें जानना चाहिए। इन असंख्यात लोकप्रमाण स्थानोंमें यवमध्य है।
5२७५. यह सूत्र सुगम है, क्योंकि उत्कृष्टरूपसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण जीवोंके एक स्थानमें वृद्धिंगत होनेपर वहाँसे लेकर असंख्यात लोकप्रमाण कषाय-उदयस्थानोंमें उतने ही जीव होकर उन स्थानोंमें यवमध्यकी उत्पत्ति होती है इस बातका निर्णय करना इसका फल है । अब यवमध्यसे आगेके स्थानोंमें जीवोंके अवस्थानक्रमके दिखलानेके लिए आगेके प्रबन्धका अनुसरण करते हैं
* तदनन्तर अन्य स्थान एक जीवसे हीन होता है।
$ २७६. तदनन्तर यवमध्यसे समनन्तर आगेका अन्य स्थान एक जीवसे हीन होता है।
* इस प्रकार असंख्यात लोकप्रमाण स्थान तुल्य जीवोंसे युक्त हैं।
६२७७. इस अनन्तर पूर्व कहे हुए स्थानके समान जीवोंसे युक्त आगेके असंख्यात लोकप्रमाण स्थान निरन्तर हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
* इसी प्रकार शेष स्थानोंमें भी जीव उक्त क्रमके अनुसार ले जाने चाहिए ।