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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ उवजोगो७ होदूण तदो अण्णम्मि तदित्थट्ठाणविसेसे एगजीवड्ढी पुव्वं व होदि त्ति जाणावण?मुवरिमसुत्तमोइण्णं
* तदो अण्णम्हि हाणे एक्को जीवो अब्भहिओ।
$ २७३. कुदो एवं चेव ? सहावदो। एत्तो पुण असंखेजलोगमेत्तेसु कसायुदयट्ठाणेसु तत्तियमेत्ता चेव जीवा होदूण तदोअण्णम्मि द्वाणम्मि तदिओ जीवो वड्ढावेयव्यो । एवं पुणो पुणो असंखेजलोगमेत्तद्धाणं गंतूणेगेगजीवं वड्ढाविय णेदव्वं जावुक्कस्सेणावलियाए असंखेजदिभागमेत्तजीवा जहण्णट्ठाणजीवेहितो संखेजगुणा समुप्पण्णा त्तिः। पुणो तम्मि उद्देसे असंखेजलोगमेत्तेसु हाणेसु तत्तियमेत्ता चेव जीवा होदूण जवमझमुप्पजदि त्ति एदस्स अत्थविसेसस्स जाणावणमुवरिमं पबंधमाह
* एवं गंतूण उक्कस्सेण जीवा एकम्हि हाणे आवलियाए असंखेजदिभागो।
२७४. एवमणंतरपरूविदेणेव कमेण गंतूण एक्कम्मि हाणविसेसे आवलियाए असंखेजदिभागमेत्ता जीवा जहण्णहाणजीवेहिंतो संखेजगुणमेत्ता उकस्सेण वड्डिदा, तत्तो परं वड्ढीए असंभवादो। एवं वडिदे जवमज्झट्ठाणमेत्यंतरे समुप्पज्जदि ति भणिदं होदि । समुप्पज्जमाणं किमेक्कम्मि चेव ढाणे समुप्पज्जइ, आहो संखेज्जेसु वाले जीव होकर उसके बाद अन्य वहाँके स्थानविशेषमें पहलेके समान एक जीवकी वृद्धि होती है इस बातका ज्ञान करानेके लिये आगेका सूत्र आया है
* तदनन्तर अन्य स्थानमें एक जीव अधिक रहता है। $ २७३. शंका-ऐसा ही किस कारणसे है ? समाधान—स्वभावसे ही ऐसा है ।
तदनन्तर पुनः असंख्यात लोकप्रमाण कषाय-उदयस्थानोंमें उतने ही जीव होकर उसके बाद अन्य स्थानमें तीसरा जीव बढ़ाना चाहिए। इस प्रकार पुनः पुनः असंख्यात लोकप्रमाण स्थान जाकर एक-एक जीवको बढ़ाते हुए उत्कृष्टरूपसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण जीवोंके प्राप्त होने तक ले जाना चाहिए, जो जीव जघन्य स्थानके जीवोंसे संख्यातगुणे हैं। पुनः वहाँपर असंख्यात लोकप्रमाण स्थानोंमें उतने ही जीव होकर यवमध्य उत्पन्न होता है इस प्रकार इस अर्थ विशेषका ज्ञान करानेके लिये आगेके प्रबन्धको कहते हैं
* इस प्रकार जाकर एक स्थानमें उत्कृष्ट रूपसे जीव आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण होते हैं।
$ २७४. इस प्रकार अनन्तर ही कहे गये क्रमसे जाकर एक स्थानविशेषमें आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण जीव, जो कि जघन्य स्थानके जीवोंसे संख्यातगुणे हैं, उत्कृष्टरूपसे वृद्धिंगत हो जाते हैं, क्योंकि इससे और अधिक वृद्धि होना असम्भव है। इस प्रकार वृद्धि होनेपर इस बीच यवमध्यस्थान उत्पन्न होता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । यवमध्य उत्पन्न