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गाथा ६९ ]
सत्तमगाद्दासुत्तस्स अत्थपरूवणा
* एवमसंखेज्जेसु लोगट्ठाणेसु तत्तिया चेव ।
$ २७०. एवमेदेण कमेण निरंतरमसंखेज्जलोगमेत्तेसु कसायुदयट्ठाणेसु जहण्णट्ठाणजीवेहिं सरिसा चैव जीवा होंति त्ति भणिदं होइ । जइ एवं कसायुदयट्ठाणेसु जवमज्झेण जीवा रांति तो ' एदिस्से पइण्णाए विघातो दुक्कदि ति णासंकणिज्जं, सव्वट्ठाणेसु णिरंतरवड्ढीए असंभवे पि तत्थ जवमज्झाकारोवदेसस्स विरोहाभावादो ।
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* तदो पुणो अण्णम्हि द्वाऐ एक्को जीवो अब्भहिओ ।
$ २७१. असंखेज्जलोगमेत्तेसु कसायुदयट्ठाणेसु जहण्णट्ठाणेण सरिसपमाणजीवेहिं अहिट्ठिएस गदेसु तदो पच्छा अण्णम्हि तदित्थकसायुदयड्डाणम्मि एक्को चेव जीवो अहिओ जायदे, सहावदो चैव तत्थ तहाविवड्डीए जीवाणमवट्ठाणणि यमदंसणादो । एवमेक्केकम्मि द्वाणम्मि एगजीववड्डी होदूण पुणो तत्तो उवरि वड्डि-हाणीहिं विणा असंखेज्जलोगमे तेसु कसायुदयट्ठाणेसु तेत्तियमेत्ता चेव जीवा होंति त्ति पदुप्पायणट्ठमिदमाह -
* तदो पुण असंखेज्जेसु लोगेसु द्वाणेसु तत्तिया चेव ।
$ २७२. सुगममेदं । एवमेत्तियमेतेसु कसायुदयट्ठाणेसु अवट्ठिदपमाणा जीवा
* इस प्रकार असंख्यात लोकप्रमाण स्थानोंमें उतने ही जीव रहते हैं ।
$ २७०. इश प्रकार इस क्रमसे निरन्तर असंख्यात लोकप्रमाण कषाय-उदयस्थानोंमें जघन्य स्थानके जीवोंके सदृश ही जीव होते हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
शंका- यदि ऐसा है तो 'कषाय- उदयस्थानों में यवमध्यरूपसे जीव रहते हैं' इस प्रतिज्ञाका विघात प्राप्त होता है ?
समाधान - ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि सब स्थानों में निरन्तर वृद्धि असंभव होनेपर भी वहाँ यवमध्याकारके उपदेशमें कोई विरोध नहीं आता ।
* तदनन्तर पुनः अन्य स्थानमें एक जीव अधिक रहता है ।
$ २७१• जघन्य स्थानके सदृश प्रमाणको लिए हुए जीवोंसे युक्त असंख्यात लोकप्रमाण कषाय-उदयस्थानोंके जानेपर उसके पश्चात् वहाँके अन्य कषाय- उदयस्थानमें एक ही जीव अधिक रहता है, क्योंकि स्वभावसे ही वहाँ उस प्रकारकी वृद्धिके साथ जीवोंके अवस्थानका नियम देखा जाता है । इस प्रकार एक-एक स्थानमें एक जीवकी वृद्धि होकर पुनः उसके आगे वृद्धि और हानिके विना असंख्यात लोकप्रमाण कषाय-उदयस्थानोंमें उतने ही जीव होते हैं इस बातका कथन करनेके लिये कहते हैं
* तदनन्तर पुनः असंख्यात लोकप्रमाण स्थानोंमें उतने ही जीव रहते हैं । $ २७२. यह सूत्र सुगम है । इस प्रकार इतने कषाय-उदयस्थानों में अवस्थित प्रमाण१. ता० प्रती एंति ते इति पाठः ।