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१२२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[उवजोगो७ * जहण्णए कसायुदयहाणे तसा थोवा ।
६२६८, कुदो ? सव्वजहण्णसंकिलेसेण परिणममाणजीवाणं बहूणमणुवलंभादो। किंपमाणा एदे ? आवलियाए असंखेजदिमागमेत्ता । कुदो एदं परिच्छिजदे ? परमगुरूवएसादो । जइ एसा जवमज्झपरूवणा अदीदकालविसया तो जहण्णए कसायुदयट्ठाणे अणंतेहि तसजीवेहिं होदव्वमिदि णासंकणिज्जं, अदीदकाले एगसमयम्मि उक्कस्सेणावलियाए असंखेजदिभागादो अहियाणं तसजीवाणं तत्थ परिणदाणमणुवलंभादो। तदो अदीदकालविसयमेगसमयुक्कस्ससंचयं घेत्तूणेसा परूवणा पयट्टा त्ति ण किंचि विरुद्धं ।
* विदिये वि तत्तिया चेव ।
$ २६९. ण केवलमेक्कम्मि चेव जहण्णए कसायुदयट्ठाणे तसा थोवा, किंतु तत्तो विदिये वि कसायुदयट्ठाणे तेत्तिया चेव तसा होति, ण ऊणा ण वढिमा ति वृत्तं होइ । कुदो एस णियमो ? सहावदो चेय।
* जघन्य कषाय-उदयस्थानमें त्रसजीव सबसे स्तोक हैं।
६२६८. क्योंकि सबसे जघन्य संक्लेशरूपसे परिणमन करनेवाले बहुत जीव नहीं पाये जाते।
शंका-इनका प्रमाण कितना है ? समाधान-ये आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। शंका--यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान—यह परम गुरुके उपदेशसे जाना जाता है।
शंका–यदि यह यवमध्यप्ररूपणा अतीत कालविषयक है तो जघन्य कषाय-उदयस्थानमें अनन्त त्रसजीव होने चाहिए।
समाधान-ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि अतीत कालविषयक एक समयमें उत्कृष्टरूपसे आवलिके असंख्यातवें भागसे अधिक त्रसजीव उक्त स्थानमें परिणमन करते हुए नहीं पाये जाते, इसलिए अतीत कालविषयक एक समयके उत्कृष्ट संचयको ग्रहणकर यह प्ररूपणा प्रवृत्त हुई है, इसलिए कुछ भी विरुद्ध नहीं है।
* द्वितीय कषाय उदयस्थानमें भी उतने ही जीव रहते हैं।
६२६९. न केवल एक ही जघन्य कषाय-उदयस्थानमें त्रसजीव सबसे थोड़े रहते हैं। किन्तु उससे दूसरे भी कषाय-उदयस्थानमें उतने ही त्रसजीव होते हैं, न कम और न अधिक यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
शंका-यह नियम किस कारणसे है ? समाधान-स्वभावसे ही यह नियम है।