________________
१२१
गाथा ६९]
सत्तमगाहासुत्तस्स अत्थपरूवणा असंखेजदिभागमेत्ताणं चेव जीवसहिदाणमुक्कस्सपक्खेण णिरंतरट्ठाणाणमुवएसादो । तदो सांतर-णिरंतरकमेण तसजीवमेत्ताणि चेव कसायुदयट्ठाणाणि जीवेहिं आवुण्णाणि त्ति घेत्तव्यं । एवं ताव वट्टमाणकालविसये तसजीवमेत्ताणं हाणाणं जीवेहिं आवुण्णत्तं णिरूविय संपहि अदीदकालमस्सियूण सव्वेसु कसायुदयहाणेसु तसजीवाणमवट्ठाणकमप्पदंसणट्ठमुवरिमं पबंधमाह
* कसायुदयहाणेसु जवमझेण जीवा रांति ।।
5 २६७. असंखेजलोगमेत्तेसु कसायुदयट्ठाणेसु अदीदकालविसये तसजीवाणमवट्ठाणकमो केरिसो त्ति पुच्छिदे जवमझेण जीवा रांति त्ति णिद्दिष्टुं । एवं च कसायुदयट्ठाणेसु जवमज्झसरूवेण जीवाणमवट्ठाणं होदि त्ति पइण्णाय संपहि जवमज्झपरूवणाए कीरमाणाए तत्थ इमाणि छ अणियोगदाराणि णादव्वाणि भवंति–परूवणा जाव अप्पाबहुए त्ति । तत्थ परूवणाए जहण्णए कसायुदयट्ठाणे अत्थि जीवा । एवं जावुक्कस्सए कसायुदयट्ठाणे अत्थि जीवा त्ति । पमाणं-जहण्णए कसायुदयट्ठाणे जीवा जहण्णेणेको वा दो वा जावुक्कस्सेणावलियाए असंखेजदिभागो। विदियट्ठाणे वि तत्तिया चेव । एवं णेदव्वं जावुकस्सट्टाणे वि जीवा आवलियाए असंखेजदिभागमेत्ता त्ति । एवमेदाणि दो वि सुगमाणि त्ति सुत्ते ण परूविदाणि । संपहि सेढिपरूवणमुवरिमं पबंधमाहआवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण ही जीव सहित निरन्तर स्थान पाये जानेका उपदेश है। इसलिए सान्तर-निरन्तरक्रमसे त्रसजीवोंकी संख्याप्रमाण ही कषाय-उदयस्थान त्रसजीवोंसे आपूर्ण हैं ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए। इस प्रकार सर्व प्रथम वर्तमान कालकी अपेक्षा त्रसजीवप्रमाण स्थान जीवोंसे आपूर्ण हैं इस बातका कथनकर अब अतीत कालकी अपेक्षा सब कषाय उदयस्थानोंमें अवस्थानक्रमको दिखलानेके लिये आगेके प्रबन्धको कहते हैं
* कषाय-उदयस्थानोंमें जीव यवमध्यके आकारसे रहते हैं।
६२६७. असंख्यात लोकप्रमाण कषाय-उदयस्थानोंमें अतीत कालकी अपेक्षा त्रसजीवोंका अवस्थानक्रम कैसा है ऐसा पूछनेपर यवमध्यरूपसे जीव रहते हैं ऐसा निर्देश किया है । और इसप्रकार कषाय-उदयस्थानोंमें यवमध्यरूपसे जीवोंका अवस्थान है ऐसी प्रतिज्ञा करके अब यवमध्यकी प्ररूपणा करनेपर वहाँ ये छह अनुयोगद्वार ज्ञातव्य हैं-प्ररूपणासे लेकर अल्पबहत्व तक । उनमेंसे प्ररूपणाकी अपेक्षा जघन्य कषाय उदयस्थानमें जीव हैं। इसी प्रकार उत्कृष्ट कषाय-उदयस्थान तक प्रत्येक कषाय उदय-स्थानमें जीव हैं। प्रमाण--जघन्य कषाय-उदयस्थानमें जीव जघन्यसे एक या दो से लेकर उत्कृष्टरूपसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । द्वितीय स्थानमें भी जीव उतने ही हैं। इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थानमें भी जीव आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं इस स्थानके प्राप्त होने तक कथन करना चाहिए। इस प्रकार ये दोनों ही अनुयोगद्वार सुगम हैं, इसलिए इनका सूत्रमें कथन नहीं किया। अब श्रेणिका कथन करनेके लिये आगेके प्रबन्धको कहते हैं
१. ता० प्रती एंति इति पाठः । २. ता० प्रतौ एंति इति पाठः ।
aamanawwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww
१६