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१२० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ उवजोगो ७ तदो तसाणमोघपरूवणट्ठमुवरिमो परूवणापबंधो
* तं जहा।
$ २६४. सुगममेदं पुच्छावकं । संपहि एवं पुच्छाविसईकयस्थस्स परूवणं कुणमाणो तत्थ ताव कसायुदयट्ठाणाणमियत्तावहारणट्ठमुबरिमं सुत्तमाह
* कसायुदयट्ठाणाणि असंखेजा लोगा।
$ २६५. असंखेजाणं लोगाणं जत्तिया आगासपदेसा अत्थि तत्तियमेत्ताणि चेव कसायुदयट्ठाणाणि होति त्ति भणिदं होइ। ताणि च कसायुदयट्ठाणाणि जहण्णद्वाणप्पहुडि जावुकस्सट्टाणे ति छवड्डिकमेणावद्विदाणि त्ति घेतव्वं । तत्थ ताव वट्टमाणसमयम्मि तसजीवेहि केत्तियाणि द्वाणाणि आपूरिदाणि केत्तियाणि च सुण्णट्ठाणाणि त्ति एदस्स णिद्धारणट्ठमुवरिमसुत्तमोइण्णं--
* तेसु जत्तिया तसा तत्तियमेत्ताणि आवुण्णाणि ।
$ २६६. तेसु असंखेजलोगमेत्तेसु कसायुदयट्ठाणेसु तसपाओग्गेसु वट्टमाणसमयम्मि केत्तियाणि हाणाणि तसजीवेहिं अवुण्णाणि त्ति णिहालिजमाणे जत्तिया तसा अत्थि तत्तियमेत्ताणि चेव कसायुदयट्ठाणाणि जीवेहिं अवुण्णाणि लब्भंति, एककम्मि कसायुदयट्ठाणे एकेकस्स चेव तसजीवस्स कदाइमवट्ठाणसंभवादो। णवरि तेत्तियमेत्ताणि कसायुदयट्ठाणाणि एगेगजीवाहेडियाणि णिरंतरसरूवेण ण लब्भंति, आवलियाए करनेके लिये आगेका प्ररूपणाप्रबन्ध है
* वह कैसे ?
$२६४. यह पृच्छावाक्य सुगम है। अब इस प्रकार पृच्छाके विषयभूत अर्थका कथन करते हुए वहाँपर सर्वप्रथम कषाय उदयस्थानोंके परिमाणका निश्चय करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं___ * कषाय-उदयस्थान असंख्यात लोकप्रमाण हैं ।
$ २६५. असंख्यात लोकोंके जितने आकाशप्रदेश हैं उतने ही कषायउदयस्थान हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है। वे कषाय उदयस्थान जघन्य स्थानसे लेकर उत्कृष्ट स्थान तक छह वृद्धियोंके क्रमसे अवस्थित हैं ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए। उनमेंसे सर्वप्रथम वर्तमान समयमें त्रस जीवोंके द्वारा कितने उदयस्थान आपूर्ण है और कितने शून्यस्थान है इस प्रकार इस विषयका निश्चय करनेके लिये आगेका सूत्र आया है
* उनमेंसे जितने त्रसजीव हैं उतने स्थान त्रसजीवोंसे आपूर्ण हैं।
६२६६. उन असंख्यात लोकप्रमाण त्रसप्रायोग्य उदयस्थनोंमेंसे वर्तमान समयमें कितने ही स्थान त्रसजीवोंसे आपूर्ण हैं इस विषयका विचार करनेपर जितने त्रसजीव हैं उतने ही कषाय उदयस्थान त्रसजीवोंसे आपूर्ण प्राप्त होते हैं, क्योंकि एक एक कषाय उदयस्थानमें एक एक ही त्रसजीवका कदाचित् अवस्थान सम्भव है। इतनी विशेषता है कि उतने सब उदयस्थान एक-एक जीवके द्वारा निरन्तररूपसे अधिष्ठित होकर नहीं प्राप्त होते । किन्तु उत्कृष्टरूपसे