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गाथा ६९]
सत्तमगाहासुत्तस्स अत्थपरूवणा जवमज्झादो उवरिमजीवा विसेसाहिया । सव्वेसु द्वाणेसु जीवा विसेसाहिया। एसा णिरयगदीए कोहकसायस्स णिरुंभणं कादूण परूवणा कया। एवं सेसकसायाणं सेसगदीणं च पादेकं णिरंभणं कादूण पयदपरूवणा णिरवसेसमणुगंतव्या । तदो उवजोगद्धद्वाणपरूवणा समत्ता।
5 २६२. संपहि कसायुदयट्ठाणेसु पयदपरूवणमुवरिमो सुत्तपबंधो
* एदेहिं दोहिं उवदेसेहिं कसायउदयट्ठाणाणि णेदव्वाणि तसाणं ।
$ २६३. एदेहि उवजोगद्धट्ठाणाणमणंतरपरूविदेहिं दोहि उवदेसेहिं पवाइजंतापवाइजंतसरूवेहिं कसायुदयट्ठाणाणि णेदव्याणि त्ति वुत्तं होइ । दोण्हं पि उवदेसाणमेत्थ परूवणामेदो पत्थि । तेण दोहि मि सरिसेहिं भावोवजोणवग्गणाओ अणुमग्गियव्याओ त्ति भावत्थो । कुदो एवं परिच्छिज्जदे ? सुत्ते तदुभयविसयविसेसणिदेसादसणादो । केसिं पुण जीवाणं कसायुदयट्ठाणाणि णेदव्वाणि त्ति आसंकाए तसाणमिदि णिदेसो कओ। तसजीवे अहिकरिय एसा परूवणा कायव्वा, तदण्णेसिं जीवाणमणंतसंखावच्छिण्णाणमसंखेजलोगमेत्तेसु थावरपाओग्गकसायुदयट्ठाणेसु सव्वकालं णिरंतरसरूवेण समयाविरोहेणावट्ठाणसिद्धीए अणुत्तसिद्धत्तेण तव्विसयपरूवणाए अणहियारादो । उनसे यवमध्यसे उपरिम स्थानोंके जीव विशेष अधिक हैं। उनसे सब स्थानोंके जीव विशेष अधिक हैं। नरकगतिमें क्रोधकषायकी मुख्यतासे यह प्ररूपणा की गई है। इसी प्रकार शेष कषायों और शेष गतियोंमेंसे प्रत्येकको मुख्यकर समस्त प्रकृत प्ररूपणा जाननी चाहिए । इसके बाद उपयोग अद्धास्थान प्ररूपणा समाप्त हुई ।
२६२. अब कषाय उदयस्थानोंमें प्रकृत प्ररूपणा करनेके लिये आगेके सूत्रप्रबन्धको
* इन दोनों उपदेशोंके आश्रयसे त्रसजीवोंके कषाय उदयस्थान जानने चाहिये ।
$ २६३. उपयोग अद्धास्थानोंके विषयमें अनन्तर कहे गये इन दोनों प्रवाह्यमान और अप्रवाह्यमान उपदेशोंके आश्रयसे कषायउदयस्थान जानने चाहिए यह उक्त कथनका तात्पर्य है। इन दोनों ही उपदेशोंकी अपेक्षा प्रकृतमें प्ररूपणाभेद नहीं है, इसलिए सदृश इन दोनों उपदेशोंके अनुसार भावोपयोगवर्गणाओंकी मार्गणा कर लेनी चाहिए यह उक्त कथनका भावार्थ है।
शंका-यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-क्योंकि सूत्रमें इन दोनों उपदेशोंके अनुसार पृथक् पृथक् विशेष निर्देश
नहीं देखा जाता।
किन जीवोंके कषाय उदयस्थान ले जाने चाहिए ऐसी आशंका होनेपर 'तसाणं' पदका निर्देश किया है । त्रसजीवोंको अधिकृतकर यह प्ररूपणा करनी चाहिए, क्योंकि उनसे अन्य स्थावर जीवोंकी संख्या अनन्त है। उनका स्थावरप्रायोग्य असंख्यात लोकप्रमाण कषाय उदयस्थानोंमें निरन्तररूपसे सर्वदा आगमानुसार पाया जाना सिद्ध है, इस प्रकार अनुक्त सिद्ध होनेसे तद्विषयक प्ररूपणाका यहाँ अधिकार नहीं है। इसलिए त्रसोंकी ओघसे प्ररूपणा