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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ उवजोगो७ जीवसण्णाणमुवलंभसंभवे विरोहाणुवलंभादो। एवं ताव एकेणुवदेसेण जवमज्झादो हेट्ठा उवरिं च गुणहाणिट्ठाणाणमद्धहाणाणं च एत्तिओ एत्तिओ भागो जीवेहि अविरहिओ होइ एत्तिओ च भागो जीवविरहिओ होइ ति णिण्णयपरूवर्ण कादण संपहि एदिस्से उवएसस्स सव्वाइरियसम्मदत्तेण पहाणभावपदुप्पायणमिदमाह
* एसो उवएसो पवाइजह ।
$ २५५. जो एसो अणंतरपरूविदो उवएसो सो पवाइजदे पण्णाविञ्जदे अविसंवादसरूवेण सव्वाइरिएहिं सव्वकालमादिरिजदि त्ति वुत्तं होइ । अपवाइजंतेण पुण उवदेसेण केरिसी पयदपरूवणा होदि त्ति एवंविहासंकाए पिण्णयकरणमुत्तरसुत्तमोइण्णं
* अण्णो उवदेसो सव्वाणि गुणहाणिट्ठाणंतराणि अविरहियाणि जीवहिं, उवजोगद्धहाणाणमसंखेन्जा भागा अविरहिदी।
$२५६. पवाइजंतादो अण्णो जो उवएसो अपवाइजंतो, तेण जीवविरहिदाविरहिट्ठाणपरूवणाए कीरमाणाए जवमज्झादो हेट्ठा उवरि वि भेदेण विणा एवं होदि ति वुत्तं होइ। सुगममण्णं जवमज्झादो हेहिमपुग्विल्लपरूवणाए समाणवक्खाण त्तादो।
जीवोंसे रहित उपलब्ध होनेमें कोई विरोध नहीं पाया जाता। इस प्रकार एक उपदेशके अनुसार यवमध्यसे पूर्वके और आगेके गुणहानिस्थानों और अद्धास्थानोंका इतना इतना भाग जीवोंसे युक्त होता है और इतना भाग जीवोंसे रहित होता है इसके निर्णयका कथन करके अब यह उपदेश सब आचार्योंद्वारा सम्मत होनेके कारण प्रधान है इस बातका कथन करनेके लिये इस सूत्रवचनको कहते हैं
* यह उपदेश प्रवाह्यमान है।
६२५५. जो यह अनन्तर कहा गया उपदेश है वह प्रवाह्यमान है. प्रज्ञापित है. अविसंवादरूपसे सब आचार्य सदा उसका आदर करते हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है। किन्तु अप्रवाह्यमान उपदेशके अनुसार प्रकृत प्ररूपणा किस प्रकारकी है इस प्रकारकी आशंका होनेपर निर्णय करनेके लिये आगेका सूत्र अवतीर्ण हुआ है
* अन्य उपदेश है कि सब गुणहानिस्थानान्तर जीवोंसे युक्त हैं तथा उपयोग अद्धास्थानोंका असंख्यात बहुभाग जीवोंसे युक्त है।
$ २५६. प्रवाह्यमानसे अन्य जो उपदेश है वह अप्रवाह्यमान उपदेश है। उसके अनुसार जीवोंसे रहित और सहित स्थानोंका कथन करनेपर यवमध्यसे पूर्व के और आगेके सभी स्थान भेदके विना इस प्रकारके होते हैं यह उक्त सूत्रका तात्पर्य है। अन्य सब कथन सुगम है, क्योंकि यवमध्यसे पूर्वको और बादकी प्ररूपणाका व्याख्यान समान है।
१ ता०प्रती सो इति पाठो नास्ति। २ ता प्रती उवयोगट्ठाणाणमसंखेज्जा भागा अविरहिया इति पाठः टीकांशस्वरूपेण मुद्रितः ।