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गाथा ६९]
सत्तमगाहासुत्तस्स अत्थपरूवणा भागमेत्तगुणहाणिट्ठाणंतराणं जीवसुण्णाणं कदाई संभवोवलंभादो। उक्स्सेण पुण सव्वाणि गुणहाणिहाणंतराणि आवुण्णाणि लब्भंति, कदाइं सव्वाणि वि गुणहाणिट्ठाणंतराणि णिरुभियूण णेरइयाणमवट्ठाणदंसणादो त्ति एसो एत्थ सुत्तत्थसब्भावो । जवमज्झादो हेट्ठा वुण ण एवंविहो जहण्णुक्कस्सपविभागो अत्थि, तत्थ सव्वकालं जहण्णदो उक्कस्सदो वि पुव्यपरूविदेण कमेण जीवाणमवट्ठाणणियमदंसणादो। तदो ण तत्थ जहण्णुकसभेदं कादण तण्णिद्देसो कओ त्ति दट्ठव्वं । संपहि जवमज्झादो उवरिमअट्ठाणाणं पि जहण्णुक्कस्सभेदेण जीवेहिं सुण्णासुण्णभावगवेसणट्ठमुत्तरसुत्तमोइण्णं
___ * जहण्णेण अद्धट्ठाणाणं संखेजदिभागो आवुण्णो । उक्कस्सेण अद्धहाणाणमसंखेजा भागा आउण्णा।
६२५४. जहण्णेण ताव अद्धट्ठाणाणं संखेजदिभागो चेव जीवेहिं आउण्णो होइ । किं कारणं ? जवमज्झादो उवरिमगुणहाणिट्ठाणंतराणं संखेजदिभागमेत्तगुणहाणिहाणंतरेसु जहण्णेणावुण्णेसु तदवयवभूदाणमट्ठाणाणं पि सव्वअट्ठाणाणं संखेजदिभागमेत्ताणमावूरणे विरोहाभावादो । उक्कस्सेण वुण णिरुद्धविसयसयलद्धट्ठाणाणमसंखेजा भागा जीवेहिं आवुण्णा होति, सव्वेसु गुणहाणिहाणंतरेसु उक्कस्सपक्खेवेजावूरिदेसु वि तदवयवभूदाणमट्ठाणाणं सगसव्वअट्ठाणाणमसंखेजदिभागमेत्ताणं
भरा जाता है, क्योंकि शेष संख्यात बहुभागप्रमाण गुणहानिस्थानान्तर कदाचित् जीवोंसे रहित पाये जाते हैं। परन्तु उत्कृष्टरूपसे सब गुणहानिस्थानान्तर जीवोंसे आपूर्ण प्राप्त होते हैं, क्योंकि कदाचित् सभी गुणहानिस्थानान्तरोंको व्याप्तकर नारकियोंका अवस्थान देखा जाता है यह प्रकृतमें सूत्रार्थका तात्पर्य है। परन्तु यवमध्यके पूर्व इस प्रकारका जघन्य और उत्कृष्टरूप विभाग नहीं है, क्योंकि वहाँ सर्वदा जघन्यरूपसे और उत्कृष्टरूपसे भी पूर्व में कहे गये क्रमके अनुसार ही जीवोंके अवस्थानका नियम देखा जाता है। इसलिये वहाँ जघन्य और उत्कृष्टका भेद करके उक्त विषयका निर्देश नहीं किया है ऐसा यहाँ समझना चाहिए । अब-यवर. यसे आगेके अद्धास्थानोंमें भी जघन्य और उत्कृष्टके भेदसे जीवोंसे रहित और सहितपनेकी गवेषणा करनेके लिये आगेका सूत्र आया है
___* जघन्यरूपसे अद्धास्थानोंका संख्यातवाँ भाग जीवोंसे आपूर्ण है तथा उत्कृष्टरूपसे अद्धास्थानोंका असंख्यात बहुभाग जीवोंसे आपूर्ण है ।
६२५४. जघन्यरूपसे तो अद्धास्थानोंका संख्यातवाँ भाग ही जीवोंसे आपूर्ण होता है, क्योंकि यवमध्यसे आगेके गुणहानिस्थानान्तरोंके संख्यातवें भागमात्र गुणहानिस्थानान्तरोंके जघन्यरूपसे जीवोंसे आपूर्ण होनेपर उनके अवयवभूत अद्धास्थानोंके भी, जो कि सब अद्धास्थानोंके संख्यातवें भागमात्र हैं, जीवोंसे परिपूर्ण होनेमें कोई विरोध नहीं आता । परन्तु उत्कृष्टरूपसे तो विवक्षित विषयसम्बन्धी सब अद्धास्थानोंके असंख्यात बहुभागस्थान जीवोंसे आपूर्ण होते हैं, क्योंकि सब गुणहानिस्थानान्तरोंके उत्कृष्ट प्रक्षेपसे आपूरित होनेपर भी उनके अवयवभूत अद्धास्थनोंमेंसे अपने सब अद्धास्थानोंके असंख्यातवें भागमात्र स्थानोंके