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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ उवजोगो ७
$ २३३. केत्तियमेत्तो विसेसो ? कोह - णोकोहकालेहिं परिहीणमाण- णोमाणकालतो । तं कथं १ अदीदकालसव्वपिंडादो माण- णोमाणकालेसु सोहिदेसु सुद्धसेसमेत्तो arita मिस्सकालो होइ । सो च संदिट्ठीए एत्तियो ८७४८, अदीदकालसव्वसमासो संदिट्ठीए ११७०० एत्तियमेत्तोति गहणादो । पुणो एत्थेव कोह - णोकोहकालेसु माण
माकाहिंतो अनंतगुणहीणेसु सोहिदेसु सुद्धसेसमेतो कोहमिस्स्यकालो संदिट्ठीए एत्तियमेत्तो होइ १०७१६ । एसो च माणमिस्सयकालादो माण - णोमाणकालाणमणंतभागमेत्तेण विसेसाहिओ त्ति णत्थि संदेहो । संदिगडी विसेसपमाणमेदं १९६८ ।
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* मायोवजुत्ताणं मिस्सयकालो विसेसाहियो ।
$ २३४. ११३७२ | केत्तियमेत्तो विसेसो १ माय णोमायकालेहिं परिहीणकोहकोहकालमेत्तो । सो च संदिट्ठीए एसो ६५६ । सेसं सुगमं, अनंतरादीदसुत्त$ २३३. विशेषका प्रमाण क्या है ?
समाधान —मान और नोमान के कालोंमें से क्रोध और नोक्रोधके कालोंको कम कर देने पर जो शेष रहे उतना विशेषका प्रमाण है ।
शंका- वह कैसे ?
समाधान – अतीत कालसम्बन्धी सब कालोंके योगमेंसे मान और नोमानकालके कम कर देनेपर जो शेष रहे वह मानकषायका मिश्रकाल होता है और वह अंकसंदृष्टिकी अपेक्षा ८७४८ इतना है, क्योंकि अतीत कालसम्बन्धी सब कालोंका योग अंकसंदृष्टिकी अपेक्षा ११७०० इतना ग्रहण किया गया है । पुनः इसीमेंसे मान और नोमानकालसे अनन्तगुणे हीन क्रोध और नोक्रोधकालके घटा देनेपर जो काल शेष रहता है वह क्रोधमिश्रकाल है, जो कि अंक दृष्टिकी अपेक्षा इतना है - १०७१६ । और यह मानके मिश्रकालसे मान - नोमानकालके अनन्तवें भागमात्र अधिक है इसमें सन्देह नहीं है। संदृष्टिकी अपेक्षा विशेषका प्रमाण यह है — १९६८ ।
विशेषार्थ – (१) मानकाल ३६, नोमानकाल २९१६; दोनोंका योग २९५२ | क्रोधकाल १२, नोक्रोधकाल ९७२; दोनोंका योग ९८४ । २९५२ - ९८४ = १९६८ विशेषका प्रमाण । मानमिश्रकाल ८७४८ + १९६८ = १०७१६ क्रोध मिश्रकाल ।
(२) मान - नोमानकाल २९५२, २९५२ : ३ (अनन्त) - ९८४ मान - नोमान के कालसे अनन्तगुणा हीन क्रोध-नोक्रोधका काल । ११७०० अतीतसम्बन्धी सब कालोंका योग । ११७०० - ९८४ = १०७१६ क्रोधमिश्रकाल ।
* उससे मायाकषायमें उपयुक्त हुए जीवोंका मिश्रकाल विशेष अधिक है ।
$ २३४. मायाकषायका मिश्रकाल - ११३७२ ।
शंका – विशेषका प्रमाण कितना है ?
समाधान - क्रोध और नोक्रोधके कालों में से माया और नोमायाके कालोंको कम करनेपर जो शेष रहे उतना है । संदृष्टिकी अपेक्षा उसका प्रमाण इतना है - ६५६ । शेष कथन