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गाथा ६८] छट्टगाहासुत्तस्स अत्थपरूवणा
१०३ $ २२४. किं कारणं ? वट्टमाणसमयम्मि लोभोवजुत्तजीवरासी सेसकसायोवजुत्तजीवे अवेक्खिय बहुओ होदूण पुणो अदीदकालम्मि एक्कदो कादुमदीव दुल्लहो होइ, तेणेसो कालो अदीदकालमाहप्पेणाणतो होदण सव्वत्थोवो जादो। तस्स पमाणमेदं २।
* मायोवजुत्ताणं मायकालो अणंतगुणो ।
$ २२५. किं कारणं ? वट्टमाणसमयलोभोवजुत्तजीवरासीदो वट्टमाणसमयमावोवजुत्तजीवरासी विसेसहीणो होइ । थोवो च जीवरासी लहुमेव तत्थ परिणमदि त्ति एदेण कारणेणेसो कालो अणंतो होदूण पुव्विलकालादो अणंतगुणो त्ति सिद्धं ४ ।
* कोहोवजत्ताणं कोहकालो अणंतगुणो । $ २२६. १२, कारणं पुव्व व वत्तव्वं । * माणोवजुत्ताणं माणकालो अणंतगुणो । $ २२७. ३६, एत्थ वि कारणमणंतरपरूविदमेव । * लोभोवजुत्ताणं णोलोभकालो अणंतगुणो । $ २२८. किं कारणं ? वट्टमाणसमयलोभोवजुत्तजीवरासिस्स अदीदकालम्मि
$ २२४. क्योंकि वर्तमान समयमें लोभकषायमें उपयुक्त हुई जीवराशि शेष कषायोंमें उपयुक्त जीवराशिकी अपेक्षा बहुत है। फिर भी उसे अतीत कालमें एकत्र करना अति दुर्लभ है, इसलिए यह काल अतीत कालके माहात्म्यवश अनन्त होकर भी सबसे थोड़ा है। उसका प्रमाण यह है-२।
* उससे मायाकषायमें उपयुक्त हुए जीवोंका मायाकाल अनन्तगुणा है।
६२२५. क्योंकि वर्तमान समयमें लोभकषायमें उपयुक्त हुई जीवराशिसे वर्तमान समयमें मायाकषायमें उपयुक्त हुई जीवराशि विशेष हीन है। और थोड़ी जीवराशि शीघ्र ही उस रूप परिणम जाती है, इस प्रकार इस कारणसे यह काल अनन्त होकर भी पूर्वराशिके कालसे अनन्तगुणा है यह सिद्ध हुआ । उसका प्रमाण ४ है। .
विशेषार्थ-यहाँ अनन्तका प्रमाण २, लोमकाल २; २४२-४ मायाकाल । * उससे क्रोधकषायमें उपयुक्त हुए जीवोंका क्रोधकाल अनन्तगुणा है । $ २२६. क्रोधकाल १२ । कारणका कथन पहलेके समान करना चाहिए । विशेषार्थ-लोभकाल २, मायाकाल ४; दोनोंका योग ६; ६४२ = १२ क्रोधकाल । * उससे मानकषायमें उपयुक्त हुए जीवोंका मानकाल अनन्तगुणा है। $ २२७. ३६, यहाँ भी पूर्व में कहा गया ही कारण जानना चाहिए ।
विशेषार्थ—लोभ-माया काल ६, क्रोधकाल १२, दोनोंका योग १८, १८४२=३६ मानकाल।
* उससे लोभकषायमें उपयुक्त हुए जीवोंका नोलोभकाल अनन्तगुणा है। $ २२८. क्योंकि वर्तमान समयमें लोभकषायमें उपयुक्त जीवराशिका अतीत कालमें