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गाथा ६८) छट्टगाहासुत्तस्स अत्थपरूवणा
१०१ २१९. वट्टमाणसमए कोहोवजुत्ताणं पि एदाणि तिण्णि चेव सत्थाणपदाणि गहेयव्वाणि, सेसाणमट्टण्हं पदाणं परत्थाणविसयाणमेत्थ गहणाभावादो।
* एवं मायोवजत्त-लोहोवजत्ताणं पि।
$ २२०. माया-लोभोवजुत्ताणं पि एवं चेव तिण्णि तिणि सत्थाणपदाणि गहेयव्वाणि । तं जहा-मायोवजुत्ताणं मायकालो णोमायकालो मिस्सयकालो च । लोभोवजुत्ताणं लोभकालो णोलोभकालो मिस्सयकालो चेदि। एवमेदाणि चउण्हं 'कसायाणं तिण्णि तिण्णि पदाणि घेत्तूण बारस सत्थाणपदाणि होति त्ति एसो एत्थ सुत्तत्थसंगहो।
5२२१. संपहि एदेसिं थोवबहुत्तणिहालणट्ठमुवरिमो सुत्तपबंधो* एदेसिं बारसण्हं पदाणमप्पाबहुअं।
$ २२२. एदेसि सत्थाणपडिबद्धाणं बारसण्हं पदाणं एत्तो अप्पाबहुअंवत्तइस्सामो त्ति पइण्णावकमेदं
$ २१९. वर्तमान समयमें क्रोधकषायमें उपयुक्त हुए जीवोंके भी ये तीन ही स्वस्थान पद ग्रहण करने चाहिए, क्योंकि परस्थानविषयक शेष आठ पदोंका इनमें ग्रहण नहीं होता।
* इसी प्रकार मायाकषाय और लोभकषायमें उपयुक्त हुए जीवोंके तीन-तीन स्वस्थान पद ग्रहण करने चाहिए।
$ २२०. मायाकषाय और लोभकषायमें उपयुक्त हुए जीवोंके भी इसी प्रकार तीन-तीन स्वस्थान पद ग्रहण करने चाहिए। यथा-मायाकषायमें उपयुक्त हुए जीवोंका मायाकाल, नोमायाकाल और मिश्रकाल तथा लोभकषायमें उपयुक्त हुए जीवोंका लोभकाल, नोलोभकाल और मिश्रकाल । इस प्रकार चार कषायोंके ये तीन-तीन पदोंको ग्रहणकर बारह स्वस्थान पद होते हैं यह प्रकृतमें विवक्षित सूत्रोंका समुच्चय अर्थ है।
विशेषार्थ-यहाँ कतिपय सूत्रों द्वारा स्वस्थानपदोंका निर्णय करते हुए जो बतलाया गया है उसका आशय यह है कि वर्तमानमें जितने जीव जिस कषायमें उपयुक्त होते हैं और उसके पूर्व भी यदि वे ही जीव उसी कषायमें उपयुक्त रहे हैं तो उन जीवोंके विवक्षित कषायविषयक उपयोगकालकी वही संज्ञा हो जाती है। जैसे पूर्व में तथा वर्तमानमें मानमें उपयुक्त हुए जीवोंके कालकी मानकाल संज्ञा तथा क्रोधमें उपयुक्त हुए जीवोंके कालकी क्रोधकाल संज्ञा आदि। तथा पूर्व में क्रोध, माया और लोभ कषायमें उपयुक्त रहे हैं और वर्तमानमें मानकषायमें उपयुक्त हैं तो उनके उस कालकी नोमानकाल संज्ञा है । इसी प्रकार अन्य कषायोंके अनुसार यथायोग्य घटित कर लेना चाहिए। तथा पूर्व में मानकषायके सा कषायमें उपयुक्त रहे हैं तथा वर्तमानमें मानकषायमें उपयुक्त हैं तो उनके उस कालकी मिश्रकाल संज्ञा है। यहाँ भी अन्य कषायोंकी अपेक्षा इसी प्रकार स्वस्थान पदोंका निर्णय कर लेना चाहिए।
६२२१. अब इन पदोंके अल्पबहुत्वका निर्णय करनेके लिए आगेका सूत्र प्रबन्ध है* इन बारह पदोंका अल्पबहुत्व कहते हैं। ६२२२. आगे स्वस्थान सम्बन्धी इन बारह पदोंका अल्पबहुत्व बतलावेंगे इस प्रकार
१ ता० प्रती पदाणं इति पाठः ।