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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ उवजोगो ७
$ २१५. एत्थ ताव बारस सत्थाणपदाणि घेत्तूणप्पा बहुअं परूवेमाणो तदवसरकरणट्ठमुवरिमं पबंधमाह -
१००
* एत्तो बारस सत्थाणपदाणि गहियाणि ।
$ २१६. एत्तो बादालीस पदपिंडादो बारस सत्थाणपदाणि ताव गहिदाणि ति वृत्तं हो । काणि ताणि सत्थाणपदाणि त्ति सिस्साहिप्पायमासंकिय सुत्तमुत्तरं भणइ* कधं सत्थाणपदाणि भवंति ?
$ २१७. किं सरूवाणि ताणि ति पुच्छिदं होइ ।
* माणोवजुत्ताणं माणकालो णोमाणकालो मिस्सयकालो ।
$ २१८. दाणि ताव तिण्णि सत्थाणपदाणि माणोवजुत्ताणं भवंति, सेसाणं ras पदाणं कोहादिसंबंधीणं परत्थाणविसयत्ते एत्थ गहणाभावादो |
* कोहोवजुत्ताणं कोहकालो णोकोहकालो मिस्सकालो ।
सब मिलाकर १२ हुए । शेष ३० परस्थान पद जानने चाहिए। उनमें से जो वर्तमानमें मानकषायसे उपयुक्त हैं उनके ९ परस्थान पद, जो वर्तमान में क्रोधकषाय से उपयुक्त हैं उनके ८ परस्थान पद, जो वर्तमान में मायाकषायसे उपयुक्त हैं उनके ७ परस्थान पद और जो वर्तमानमें लोभकषायसे उपयुक्त हैं उनके ६ परस्थान पद इस प्रकार सब मिलाकर सब परस्थानपद ३० होते हैं । इन सबका स्पष्टीकरण सुगम है ।
$ २१५. अब यहाँपर सर्व प्रथम बारह स्वस्थान पदोंके अल्पबहुत्वका कथन करते हुए उसका अवसर करनेके लिए आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं
* इनमेंसे बारह स्वस्थान पदोंको ग्रहण किया है ।
$ २१६. यह जो व्यालीस पदोंका पिंड है उनमें से सर्वप्रथम बारह स्वस्थान पद ग्रहण किये हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है । वे स्वस्थान पद कौनसे हैं इस प्रकार शिष्य के अभिप्रायानुसार आशंकारूप आगेका सूत्र कहते हैं
* वे स्वस्थान पद क्यों हैं ?
$ २१७. इस सूत्र द्वारा उनका अर्थात् स्वस्थान पदोंका स्वरूप क्या है यह पृच्छा की गई है।
* मानकषायमें उपयुक्त हुए जीवोंके मानकाल, नोमानकाल और मिश्रकाल ये तीन स्वस्थान पद होते हैं ।
$ २१८. मात्र ये तीन स्वस्थानपद मानकषाय में उपयुक्त हुए जीवोंके होते हैं, क्योंकि क्रोधादि कषायों से सम्बन्ध रखनेवाले शेष नौ पद परस्थानको विषय करनेवाले होनेसे यहाँ
ग्रहण नहीं किया है ।
* क्रोधकषायमें उपयुक्त हुए जीवोंके क्रोधकाल, नोक्रोधकाल और मिश्रकाल ये तीन स्वस्थान पद होते हैं ।