________________
गाथा ६८]
छट्टगाहासुत्तस्स अत्थपरूवणा समासेण दसविहो पयदकालो लब्भइ ति पयदत्थमुवसंहरइ
* एवं मायोवजुत्ताणं दसविहो कालो।
$ २११. सुगममेदं, अणंतरादीदपबंधेणेव गयत्थत्तादो। संपहि वट्टमाणसमयलाभोवजुत्ताणमदीदकालविसये पयदकालाणमियत्तावहारणमुवरिमं सुत्तपबंधमाह
* जे अस्सिं समये लोभोवजुत्ता तेसिं तीदे काले माणकालो दुविहो, कोहकालो दुविहो, मायाकालो दुविहो, लोभकालो तिविहो ।
२१२. एत्थ कारणं पुव्वं व परूवेयव्वं । * एवमेसो कालो लोहोवजुत्ताणं णवविहो ।
$ २१३. सुगमं चेदं पयदत्थोवसंहारवक्कं । संपहि चदुण्हं कसायाणं सव्वपदसमासो एत्तिओ होइ त्ति पदुप्पायणट्ठमुत्तरसुत्तोवण्णासो
* एवमेदाणि सव्वाणि पदाणि बादालीसं भवति ।
$ २१४. माणादिकसाएसु जहाकम १२ ११ १० ९ एत्तियाणं पदाणमेगट्ठीकरणेण तदुप्पत्तिदंसणादो । पूरी तरहसे उपसंहार सम्भव है, इसलिए यहाँपर सब कालोंको मिलाकर दस प्रकारका प्रकृत काल प्राप्त होता है इस प्रकृत अर्थका उपसंहार करते हैं
* इस प्रकार मायामें उपयुक्त हुए जीवोंके दस प्रकारका काल होता है।
$ २११. यह सूत्र सुगम है, क्योंकि अनन्तर अतीत हुए प्रबन्धके द्वारा इसका अर्थ ज्ञात है। अब वर्तमान समयमें लोभकषायमें उपयुक्त हुए जीवोंके अतीत कालकी अपेक्षा प्रकृत कालोंकी संख्याका अवधारण करनेके लिए आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं
* जो इस समय लोभकषायमें उपयुक्त हैं उनके अतीत कालमें मानकाल दो प्रकारका, क्रोधकाल दो प्रकारका, मायाकाल दो प्रकारका और लोभकाल तीन प्रकारका होता है। . ६ २१२. यहाँपर कारणका कथन पहलेके समान करना चाहिए।
* इस प्रकार लोभकषायमें उपयुक्त हुए जीवोंके यह काल नौ प्रकारका होता है।
$ २१३. प्रकृत अर्थका उपसंहार करनेवाला यह वचन सुगम है । अब चारों कषायोंके सब पदोंका योग इतना होता है इस बातका कथन करनेके लिए आगेके सूत्रका उपन्यास करते हैं
* इस प्रकार ये सब पद व्यालीस होते हैं।
६२१४. मानादि कषायोंमें यथाक्रम १२+ ११ + १०.+९ इतने पदोंका योग करनेपर उनकी अर्थात् ४२ पदोंकी उत्पत्ति देखी जाती है।
विशेषार्थ—पहले हम मानकषायके तीन स्वस्थान पद दिखला आये हैं। इसी प्रकार क्रोध, माया और लोभकषाय इनमेंसे प्रत्येकके तीन-तीन स्वस्थान पद जान लेना चाहिए।
१ ता०प्रती वत्तव्वं इति पाठः ।