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गाथा ६६]
चउत्थगाहासुत्तस्स अत्थपरूवणा * अणुक्कस्समजहण्णेसुअणुभागट्ठाणेमु उक्कस्सियाए माणोवजोगद्धाए जीवा असंखेजगुणा।
६१७३. पुविल्लरासी आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तो, एसो वुण असंखेज्जसेढिमेत्तो, अजहण्णाणुकस्सकसायुदयट्ठाणेसु णिरुद्धेसु तदुवलंभसंभवादो। तम्हा पुव्विल्लादो असंखेज्जगुणो जादो । गुणगारो वि असंखेज्जाओ सेढीओ।
* जहणियाए माणोवजोगद्धाए जीवा असंखेजगुणा।
$ १७४. 'अणुक्कस्समजहण्णेसु अणुभागट्ठाणेसु' त्ति पुव्वसुत्तादो अणुवट्टदे । तेणेसो वि रासी असंखेजसेढिमेत्तो होदण पुग्विन्लादो असंखेजगुणो जादो, उक्कस्समाणोवजोगद्धापरिणदजीवेहिंतोजहण्णमाणोवजोगद्धापरिणदजीवाणं सरिसकसायुदयट्ठाणविसयाणं तहाभावसिद्धीए बाहाणुवलंभादो ।
* अणुकस्समजहण्णासु माणोवजोगद्धासु जीवा असंखेजगुणा ।
१७५. एत्थ वि 'अणुक्कस्समजहण्णेसु' त्ति अहियारसंबंधो । सेसं सुगमं । * एवं सेसाणं कसायाणं ।
$ १७६. जहा माणकसायस्स णवहिं पदेहिं पयदप्पाबहुअविणिण्णयो को तहा कोह-माया-लोभाणं पि कायव्वो, विसेसाभावादो। संपहि एदेणेव परत्थाणप्पा
* उनसे अनुत्कृष्ट-अजघन्य अनुभागस्थानोंमें और उत्कृष्ट मानोपयोगकालमें जीव असंख्यातगुणे हैं।
$ १७३. पिछली राशि आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है, किन्तु यह राशि असंख्यात जगश्रेणिप्रमाण है, क्योंकि अजघन्य-अनुत्कृष्ट कषाय-उदयस्थानों में उनकी उपलब्धि सम्भव है। इसलिए पिछली राशिसे यह राशि असंख्यातगुणी है। गुणकार भी असंख्यात जगश्रेणिप्रमाण है। . * उनसे जघन्य मानोपयोगकालमें जीव असंख्यातगुणे हैं।
१७४. 'अनत्कष्ट-अजघन्य अनभागस्थानों में इस पदकी पर्व मनसे अनवनि होती है । इसलिए यह राशि भी असंख्यात जगश्रेणिप्रमाण होकर पिछली राशिसे असंख्यातगुणी बन जाती है, क्योंकि उत्कृष्ट मानोपयोगकालसे युक्त जीवोंसे उक्त जीवोंके समान कषायउदयस्थानके विषयभूत ऐसे जघन्य मानोपयोगकालसे युक्त जीवोंके असंख्यातगुणे सिद्ध होनेमें कोई बाधा नहीं आती।
* उनसे अनुत्कृष्ट-अजघन्य मानकषायसम्बन्धी उपयोगकालोंमें स्थित जीव असंख्यातगुणे हैं।
६ १७५. यहाँपर भी 'अनुत्कृष्ट-अजघन्य अनुभागस्थानों में इस पदका अधिकारवश सम्बन्ध कर लेना चाहिए । शेष कथन सुगम है।
* इसी प्रकार शेष कषायोंकी अपेक्षा अल्पबहुत्व जानना चाहिए।
$ १७६. जिस प्रकार नौ पदोंके आश्रयसे मानकषायके प्रकृत अल्पबहुत्वका निर्णय किया उसी प्रकार क्रोध, माया और लोभकषायकी अपेक्षा भी करना चाहिए, क्योंकि उससे