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गाथा ६६]
चउत्थगाहासुत्तस्स अत्थपरूवणा माणादीणमेक्केकस्स कसायस्स जहण्णुकस्साजहण्णाणुक्कस्सभेयभिण्णकसायुदयट्ठाणपडिबद्धाणं तिण्हं पदाणं कसायोवजोगद्धट्ठाणेहिं तहा चेव तिहाविहत्तेहिं संजोगेण समुप्पण्णाणि णवपदाणि होति । तं जहा–कोहादीणमुक्कस्सकसायुदयट्ठाणे कसायोवजोगद्धाए च पडिबद्धमेक्कं पदं । तेसिं चेवुक्कस्सकसायुदयट्ठाणे जहण्णकसायोवजोगद्धाए च विदियं । उक्कस्सकसायुदयहाणे अजहण्णाणुक्कस्सकसायोवजोगद्धासु च तदियं । जहण्णकसायुदयट्ठाणे उक्कस्सकसायोवजोगद्धाए च चउत्थं । जहण्णकसायुदयट्ठाणे जहण्णकसायोवजोगदाए च पंचमं । जहण्णकसायुदयट्ठाणे अजहण्णाणुकस्सकसायोवजोगद्धट्ठाणेसु च छटुं। अजहण्णाणुकस्सकसायुदयट्ठाणेसु उक्कस्सकसायोवजोगद्धाए च सत्तमं । अजहण्णाणुक्कस्सकसायुदयट्ठाणेसु जहण्णकसायोवजोगद्धाए च अट्ठमं । अजहण्णाणुकस्सकसायुदयट्ठाणेसु अजहण्णाणुकस्सकसायोवजोगद्धट्ठाणेसु च णवममिदि । एवमेदेहिं णवहि पदेहिं तसजीवाणं थोवबहुत्त मेत्तो अहिकीरदि ति सुत्तत्थसब्भावो ।
* तं जहा।
$ १६६. सुगममेदं पुच्छावक्कं । एवं च पुच्छाविसईकयस्स अप्पाबहुअस्स माणादिकसायपरिवाडीए एसो णिद्देसो ।
* उक्कस्सए कसायुदयहाणे उक्कस्सियाए माणोवजोगद्धाए जीवा थोवा।
समाधान मानादि कषायोंमेंसे एक-एक कषायके जघन्य, उत्कृष्ट और अजधन्यानुत्कृष्ट इस प्रकारसे भेदरूप कषाय-उदयस्थानोंसे सम्बन्ध रखनेवाले तीन पदोंके तथा उसी प्रकार तीन रूपसे विभक्त हुए कषाय-उपयोगाद्धास्थानोंके संयोगसे उत्पन्न हुए नौ पद होते हैं। यथा-क्रोधादिके उत्कृष्ट कषाय-उदयस्थानमें और कषाय-उपयोगकालस्थानमें प्रतिबद्ध पद है। उन्हींके उत्कृष्ट कषाय-उदयस्थानमें और जघन्य कषाय उपयोगकालस्थानमें प्रतिबद्ध दूसरा पद है । उत्कृष्ट कषाय उदयस्थानमें और अजघन्यानुत्कृष्ट कषाय-उपयोगकालस्थानों में प्रतिबद्ध तीसरा पद है। जघन्य कषाय-उदयस्थानमें और उत्कृष्ट कषाय उपयोगकालस्थानमें प्रतिबद्ध चौथा पद है। जघन्य कषाय उदयस्थानमें और जघन्य कषाय-उपयोगकालस्थानमें प्रतिबद्ध पाँचवाँ पद है। जघन्य कषाय-उदयस्थानमें और अजघन्यानुत्कृष्ट कषाय-उपयोगकालस्थानों में प्रतिबद्ध छठा पद है । अजघन्यानुत्कृष्ट कषाय-उदयस्थानोंमें और उत्कृष्ट कषायउपयोगकालस्थानमें प्रतिबद्ध सातवाँ पद है। अजघन्यानुत्कृष्ट कषाय-उदयस्थानोंमें और जघन्य कषाय-उपयोगकालस्थानमें प्रतिबद्ध आठवाँ स्थान है। अजघन्यानुत्कृष्ट कषाय-उदयस्थानोंमें और अजघन्यानुत्कृष्ट कषाय-उपयोगकालस्थानोंमें प्रतिबद्ध नौवाँ स्थान है। इस प्रकार इन नौ पदोंके द्वारा आगे त्रसजीवोंका अल्पबहुत्व अधिकृत है यह इस सूत्रके अर्थका आशय है।
* वह कैसे ?
$ १६६. यह पृच्छावाक्य सुगम है । इस प्रकार पृच्छाके विषयभूत हुए अल्पबहुत्वका मानादि कषायोंके क्रमसे यह निर्देश है ।
* उत्कृष्ट कषाय-उदयस्थानोंमें और उत्कृष्ट मानोपयोगकालमें जीव सबसे थोड़े हैं।