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गाथा ६४]
विदियगाहासुत्तस्स अत्थपरूवणा * जे संखेजलोभोवजोगिगा भवा ते भवा विसेसाहिया।
$ ११९. केत्तियमेत्तो विसेसो ? पुन्विल्लाणमसंखेजभागमेत्तो । एवमेदेसिमट्ठण्हं पदाणं णिरयगइपडिबद्धाणं सकारणमप्पाबहुअं परूविय संपहि देवगदीए वि एसो चेव अप्पाबहुआलावो विलोमकमेण जोजेयव्वो त्ति पदुप्पायणट्ठमप्पणासुत्तमाह
* जहा गैरइएसु तहा देवेसु । णवरि कोहादो आढवेयव्वो। ..
६१२०. जहा जेरइएसु पयदप्पाबहुआलावो को तहा देवेसु वि कायव्यो । णवरि विसेसो कोहादो आढवेयव्वो त्ति । कोहादो आढविय पच्छाणुपुन्वीए जोजेयव्यो त्ति भणिदं होइ । संपहि एदस्सेव जोजणकमप्पदंसणटुं उवरिमं पबंधमाह
* तं जहा।
१२१. सुगमं । * जे असंखेजकोहोवजोगिगा भवा ते भवा थोवा । * जे असंखेजमाणोवजोगिगा भवा ते भवा असंखेनगुणा । * जे असंखजमायोवजोगिगा भवा ते भवा असंखेजगुणा। * जे. असंखेन्जलोभोवजोगिगा भवा ते भवा असंखेजगुणा । * जो लोभकषायके संख्यात-उपयोगवाले भव हैं वे भव विशेष अधिक हैं। ६ ११९. शंका-विशेषका प्रमाण कितना है ?
समाधान-पहले जो विशेषका प्रमाण बतलाया है उनके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इस प्रकार नरकगतिसे सम्बन्ध रखनेवाले इन आठ पदोंके अल्पबहुत्वका सकारण कथन करके अब विलोमक्रमसे देवगतिमें भी यही अल्पबहुत्व आलाप योजित कर लेना चाहिए इस बातका कथन करनेके लिए अर्पणासूत्रको कहते हैं
- * जिस प्रकार नारकियोंमें प्रकृत अल्पबहुत्व है उसी प्रकार देवोंमें है। इतना विशेष है कि देवोंमें क्रोधकषायसे प्रारम्भ करना चाहिए।
६ १२०. जिस प्रकार नारकियोंमें प्रकृत अल्पबहुत्वका कथन किया है उसी प्रकार देवोंमें भी करना चाहिए । इतनी विशेषता है कि क्रोधकषायसे अल्पबहुत्वका प्रारम्भ करना चाहिए । क्रोधकषायसे आरम्भ कर पश्चादानुपूर्वीसे योजना करनी चाहिए यह उक्त कथनका तात्पर्य है। अब इसी विषयके योजनाक्रमको दिखलानेके लिये आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं
* वह कैसे ? $ १२१. यह सूत्र सुगम है। * जो क्रोधकषायके असंख्यात उपयोगवाले भव हैं वे भव सबसे स्तोक हैं। * जो मानकषायके असंख्यात उपयोगवाले भव हैं वे भव असंख्यातगुणे हैं । * जो मायाकषायके असंख्यात उपयोगवाले भव हैं वे भव असंख्यातगुणे हैं । * जो लोभकषायके असंख्यात उपयोगवाले भव हैं वे भव असंख्यातगुणे हैं ।
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