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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ उवजोगो ७ भवम्मि असंखेजवारमुप्पन्जिय तदो विदियवारं समयुत्तरभवम्मि समुप्पजदि । एवमेत्थ वि असंखेजवारमुववण्णो। एवं समयुत्तरादिकमेण उवरिमासंखेजोवजोगिगभवेसु वि णिरंतरमुप्पायणविहिं कादण णेदव्वं जाव तेत्तीसं सागरोवमियचरिमभवे त्ति । एदमेगं भवपरिवत्तं कादूण एवंविहा अणंता भवपरिवत्ता णेदव्वा, अदीदकालप्पणाए भवपरिवत्ताणं तप्पमाणत्तोवलंभादो । जेणेत्थ हेडिमभवपरिवत्तेहिंतो उवरिमभवपरिवत्ता असंखेजगुणहीणा जादा तेणासंखेजकोहोवजोगिगभवाणमुवरि तस्सेव संखेजोवजोगिगभवा असंखेजगुणा ति भणिदा। ___ * जे संखेजमाणोवजोगिगा भवा ते भवा विसेसाहिया।
६११७. केत्तियमेत्तो विसेसो ? कोहस्स संखेजोवजोगिगभवाणमसंखेजभागमेत्तो। किं कारणं ? कोहस्स संखेजोवजोगिगमवेहितो विसेसाहियमद्धाणं विसईकरिय एदेसिमवद्विदत्तादो। ___ जे संखेन्जमायोवजोगिगा भवा ते भवा विसेसाहिया ।
$ ११८. एत्थ वि सयगुणगारो जइ वि संखेजरूवमेत्तो तो.वि विसेसाहियत्तमेदं ण विरुज्झदे, हेट्ठिमभवपरिवत्तेहितो उवरिमभवपरिवत्ताणमसंखेजगुणहीणत्ते संते वि सयगुणगारस्स तत्थ पाहणियाभावादो।
फिर भी इसी विघिसे पूर्वोक्त भवमें असंख्यात वार उत्पन्न होकर तदनन्तर दूसरी बार एक समय अधिक भवमें उत्पन्न होता है। इस प्रकार इस भवमें भी असंख्यात धार उत्पन्न हुआ। इस प्रकार एक समय अधिक आदिके क्रमसे उपरिम असंख्यात-उपयोगवाले भवोंमें भी निरन्तर उत्पन्न करानेकी विधि करके तेतीस सागरोपमप्रमाण अन्तिम भवके प्राप्त होने तक उत्पन्न कराते हुए ले जाना चाहिए। यह एक भवपरिवर्तन करके इसी प्रकार अनन्त भव परिवर्तन कराने चाहिए, क्योंकि अतीत कालकी मुख्यतासे भवपरिवर्तन तत्प्रणाम उपलब्ध होते हैं। चूंकि यहाँ अधस्तन भव परिवर्तनोंसे उपरिम भवपरिवर्तन असंख्यातगुणे हीन हुए, इसलिए क्रोधकषायके असंख्यात उपयोगवाले भवोंसे उसीके संख्यात-उपयोगवाले भव असंख्यातगुणे हैं यह कहा है।
* जो मानकषायके संख्यात-उपयोगवाले भव हैं वे भव विशेष अधिक हैं। $ ११७. शंका-विशेषका प्रमाण कितना है ?
समाधान-क्रोधकषायके संख्यात-उपयोगवाले भवोंके असंख्यातवें भागप्रमाण है, क्योंकि क्रोधकषायके संख्यात उपयोगवाले भवसे विशेष अधिक अध्वानको विषयकर ये अवस्थित हैं।
* जो मायाकषायके संख्यात-उपयोगवाले भव हैं वे भव विशेष अधिक हैं।
$ ११८. यहाँपर भी अपना गुणकार यद्यपि संख्यात अंकप्रमाण है तो भी इनका विशेष अधिक होना विरोधको प्राप्त नहीं होता, क्योंकि अधस्तन भवपरिवर्तनोंसे उपरिम भवपरिवर्तन असंख्यातगुणे हीन होनेपर भी अपने गुणकारकी वहाँ प्रधानता नहीं है।