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________________ जयधवला सहिदे कसायपाहुडे [ वेदगरे $ १७७. संपदि एत्थ तेरस श्ररिणयोगद्दाराणि णादव्वाणि भवंति - समुकित स जाव पावहुए ति । तत्थ ताव समुक्कि तणं वत्तइस्सामो । तं जहा - समुचिणाणुः दुविहो णिद्देसो-- योघेण आदेसेण य । श्रघेण श्रत्थि भुज० - अप्प०-७ - श्रवद्वि०उदीर० । एवं मसतिए । आदेसेण रइय० अस्थि भुज० अप्प० श्रवडि ० उदीर० । एवं सव्वरइय० - सव्वतिरिक्ख- मरयुसापञ्ज० सव्वदेवा सि । एवं जाव । एवं सुगमतादो अप्पणीयत्तादो च समुत्तिणागम मुल्लंघिय सामित्तविहासणडुमिदमाह - * तदो सामित्तं । ० अवत्त०० { 5 १७८. सुगमं । ॐ भुजगार अप्पवर अचट्टिदपवेसगो की होइ ? ६ १७९. सुगमं । * अण्णदरो । ६ १८०. मिच्छाइड्डी सम्माहट्टी वा सामिओ होदि ति भणिदं होइ । अवसव्वपवेसगो को होइ । ३ १८१. सुगममेदं पुच्छावकं । * अरणको सामाले प्रतिरोजी महाराज $ १७७. अब यहाँ पर समुत्कीर्तनासे लेकर अल्पबहुत्व तक तेरह अनुयोगद्वार ज्ञातव्य । उनमें से सर्व प्रथम समुत्कीर्तन को बतलाते हैं । यथा - समुत्कीर्तनानुगमकी अपेक्षा निर्देश, दो प्रकारका है - श्रोध और आदेश । श्रोघसे भुजगार, अल्पतर, अवस्थित और वक्तव्यपदकं उदीरक जीव हैं। इसी प्रकार मनुष्यत्रिक में जानना चाहिए। श्रादेशसे नारकियों में भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदके उदीरक जीव हैं। इसी प्रकार सब नारकी, सब तिर्यख, मनुष्य अपर्याप्त और सब देवोंमें जानना चाहिए। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। इस प्रकार सुगम होनेसे और अल्प वर्णनीय होनेसे समुत्कीर्तनानुगमको उल्लंघन कर स्वामित्वका व्याख्यान करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं- * उसके बाद स्वामित्वका अधिकार है । $ १७८. यह सूत्र सुगम है । * भुजगार, अल्पतर और अवस्थितपद्का प्रवेशक कौन जीव है ? $ १७८. यह सूत्र सुगम है । * अन्यतर उक्त पदका प्रवेशक है । १८०. मिध्यादृष्टि और सम्यन्द्रष्टि जीव स्वामी है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । * अवक्तव्य पदका प्रवेशक कौन जीव है ? $ १८१ यह प्रच्छावाक्य सुगम है । * उपशमनासे गिरनेवाला अन्यतर जीव अवक्तव्यपदका प्रवेशक है ।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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